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अनगारधर्मामृतपिणी टीका अ० ८ पइराजयुद्धनिरूपणम् निग्गच्छित्ता एगयओ मिलायंति, मिलायित्ताजणेव मिहिला तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥ सू० ३२ ॥
टीका-'तएण तेसिं' इत्यादि । ततस्तदन्तर तेपा जितशत्रुममुखाणा पण्णा राज्ञा दता यत्रैव मिथिला नगरी तत्रैव 'प्राधारयद् गमनाय ' गन्तुमुद्यताः। तत खलु पडपि दूता यत्रैव मिथिला तत्रोपागन्छति, उपागत्य मिथिलाया 'अग्गुज्जाणसि' अप्रोद्याने प्रधानोद्याने, प्रत्येक २ 'खधावारनिवेस' स्कन्यागारनिवेश-शिविरस्य ' छावनी' इति भापा प्रसिद्धस्य निवेश स्थापन कुर्वन्ति, कृत्वा, मिथिला राजधानीमनुप्रविशन्ति, यत्रैय कुम्भको राना तत्रैवोपागच्छति, उपागस्य
'तण्ण तेसि जियसतू पामोक्खार्ण' इत्यादि।
टीकार्थ-(तएण) इस के बाद (तेसिं जियसत्तू पामोरखाणं छह राईण) उन जितशत्रु प्रमुख छो राजाओं के (यो ) दूत (जेणेव मिहिला ) जहा वह मिथिला नगरी थी ( तेणेष पहारेत्थ गमणाए) उस ओर अपने २ स्थान से चल दिये (तएण छप्पियदया जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छति ) चलते २ वे छहों ही दूत एक ही साथ जहा मिथिला नगरी थी वहा आये। ( उवागच्छित्ता मिहिलाए अग्गुज्जाणसि पत्तेय २ खधावारनिवेस करेंति, करित्ता मि हिल रायहाणि अणुपविसति ) वहा आकर मिथिलानगरी प्रधान उद्यान में उन सबने अलग २ अपनी २ छावनी डाल दी। छाननी डालकर फिर वे मिथिला नगरी में प्रवेश किया-(अणुपविसित्ता जेणेव कुभए
तएण तेसि जियमत्तू पामोरसाण इत्यादि ।
साथ-(तएण) त्या२५छी (तेसिं जिय मत्तू पामोरपा ण ण्ह राईण ) लिश प्रभुण छये २२माना (दूया) इ. (जेणेव मिहिला) मिथिला नगरी ती (तेणे पहारेत्य गमणाए) ते त२५ पातपाताना स्थानथी 64 गया (तएण छप्पिय दूया जेणेष मिहिला तेणेव आगन्छ ति ) त छये तो ચાલતા ચાલતા એકી સાથે જ જવા મિથિલા નગરી હતી ત્યાં આવી પહોચ્યા
(उनागच्छित्ता मिहिलाए अग्गुजाण मि पत्तेय २ खधावार निवेस करेंति, फरित्ता मिहिल रायहाणि अणुपविसति)।
ત્યા પડે ચીને બધાએ મિયિકા નગરીના પ્રધાન ઉ વાનમાં પિતપતાને पसल नाभ्यो ५५५ नाभी तमे मिथिन नगरीमा गया (अणुविसिता लेणेव कुभए तेणेव उवागच्छ ति ) भने ort 85 in इन या पहाच्या