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ज्ञाताधर्मकयात्र
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आज्ञप्त ? ततः स चित्रकरदारफ, अनीनशत्रु राजानमेवमनीत हे स्वामिन ! एव खलु मल्लदरा कुमारोऽन्यदा यदाचित अन्यस्मिन् कस्मिंचित समये, चित्ररुरश्रेणि चिनयारान् शन्दयति = माहूतान् । वि एवमवादीत् है देवानुप्रियाः । यूय खलु मम चित्रसभा चित्रयत त चेत्र सव्वभाणियन्त्र' तदेव सर्व भणितम् - चिनकर विषयक सफर पूर्वोक्तमेन वृत्तान्त यान्यमित्यर्थः, जान मम सडासम छिंदा वेड ' यावन्मम सन्देशक छेदयति । चित्रयत' इत्यादि,
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हे देवानुप्रिय | तुम किस कारण से मल्लदत्तकुमार से निर्वासित होने के लिये आजप्त किये गये हो (तणं से चित्तरदार अदीण सतू राय एन वयाती - एव ग्वलु सामी । मल्लदिन्ने कुमारे अण्णया कपाइ चित्तगरसेणि सहावे, महावित्ता एव वयासी तुम्भेण देवा शुपिया ! मम चित्तसभ त चेत्र सव्व भाणियन्त्र जाव मम सडासग छिंदावेइ जिदाचित्ता निव्विसय आणवेद्द त एव ग्वलु सामी ! मल्ल दिन्नेणं कुमारेण निव्विसये आणत्ते ) उस चित्रकर दारक ने तब अदीन शत्रु राजा से कहा- हे स्वामिन् । मत्लदत्त कुमार ने किसी एक समय चित्रकारों की श्रेणी को बुलाया और बुलाकर उस से ऐसा कहा कि हे देवानुप्रियों ! तुम लोग मेरे इस चित्रगृह को चित्रित करो इस तरह पहिले की सन घटना उस चित्रकार ने अदीनशत्रु राजा को उरू और जघाओं को छेदने तक की सुना दो । छिदवा कर फिर उन्होंने मुझे
કે હે દેવાનુપ્રિય ! મલદત્ત કુમારે તમને શા કારણથી દેશમાથી નિર્વાસિત થઈ જવાની આજ્ઞા આપી છે ?
(तरण से चित्तयरदारए अदीण सत्तूराय एव वयासी - एव खलु मामी ! मल्लदिन्ने कुमारे अण्णया कमाइ चित्तगरसेणि सदावेइ सदावित्ता एव क्यासीतुन्भेण देवाणुपिया ! मम चित्तसभ त चेत्र सव्य भाणियन्त्र जाव मम सडाएग छिंदावे जिंदावित्तानिन्विमय आणवेइ त एवं खलु सामी ! मल्लदिन्नेणं कुमा