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________________ अनगारधर्मामृतवपिणी टीका अ० ८ काशिरामदासनृपवर्णनम् नो चैव खलु शक्नोति सपटयितुम् तैः सुपर्णकारैस्तस्य त्रुटितस्य कुण्डलयुगलस्य सन्धि घटयितुमने को पाया कृताः, परंतु कुण्डल सन्धेर्यथोचित योजनाभावात्ते विफलप्रयत्ना अभूवन्निति भावः । ततस्तदनन्तर खलु सा सुवर्णकारश्रेणिर्यचैत्र कुम्भक - मिथिलाराजः तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य करतल्परिगृहीत शिर आवतं दशनख मस्तकेऽञ्जकृत्वा करद्वय सयोज्य ' बढावेत्ता ' वर्धयित्वा - 'जयजये ' ति शब्देनाभिनन्द्य एव = वक्ष्यमाणमकारेण अवादीद - हे स्वामिन् । एव खलु अद्य यूयमस्मान् शब्दयथ, शब्दयिता यावत् भवद्भिरेव वयमाज्ञप्ताः - ' अस्य कु· आकर उन स्थानों में बैठ गये- बैठकर उन लोगो ने अनेक सावनी से, अनेक उपायों से अनेक व्यवस्थाओं से उस दिव्य कुडल के युगल की सधि को जोडने की इच्छा की, परन्तु ( नो चेवण सचाएड सघडित्तए, तएण सा सुवण्णगारसेणी जेणेव कुभए तेणेव उवागच्छद्द ) वे उस सधी को प्रयोचित रूप से जोड़ ने में समर्थ नही हो सके-अतः उन का समस्त प्रयत्न विफल हुआ। इस तरह विफल प्रयत्न वाले हुए वे लोग जहा मिथिलाधिपति कुमक राजा थे वहा गये उवागच्छित्ता करयल० वद्भावेत्ता एव व्यासी) वहा जाकर उस सुवर्णकार श्रेणी ने दोनों हाथो को जोडकर राजाको बवाई दी जय हो विजय हो इस तरह उसका अभिनंदन किया बाद में इस प्रकार कहा - ( एव खलु सामी ! अज्ज तुभे अम्हे सदावे, सदावित्ता जाव मधि सवाडेत्ता ण्यमाण पच्चपण ) स्वामिन् | आपने आज हमलोगों को बुलाया था और ४०१ ત્યા આવ્યા ત્યા તેએ ખેડા અને બેસીને તે લેાકાએ જાત જાતના સાધને, ઉપાયે તેમજ અનેક જાતની વ્યવસ્થાએથી બને કુંડળાના તૂટેલા ભાગને સાધવાના પ્રયત્ન કર્યા પણ ( नो चेत्र ण मचाएड सत्रडित्तए, तएण सा सुनण्णगारसेणी जेणेव कुभए तेणेन उवागच्छर ) તેઓ! કુંડળાના તૂટેલા સ ધિભાગને સાધવામાં સમય થઈ શકયા નહિ અને તેના બધા પ્રયત્ન નિષ્ફળ બન્યા આ પ્રમાણે નિષ્ફળ પ્રયત્ન वाजा तेयो मघा न्या मिथिलाधिपति कुल राज हता त्या गया ( उवागच्छित्ता करयल० वद्धावेत्ता एव वयासी ) त्याने ते सोनी હાથ જોડી ને રાજને જયયાએ જયાએ આ પ્રમાણે ના રાખ્તોથી અભિ નદિત કર્યો અને ત્યાર પછી કહેવા લાગ્યા- ने एव खलु सामी ! अज्ज तुम्भे अम्हे सदावेह सदावित्ता जाव सधि सघाढेता एयमाण पच्चपिणt )
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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