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यथा भगवती सूत्रे महालो वर्णितस्तथेय मी विज्ञेयेत्यर्थः । अथ गाथा द्वयेन मल्लि वर्णयति' सा' इत्यादि सा वर्धमाना भवती लोकच्युता अनुपम श्रीका, दासीदास परिवृता परिकीर्णा पीठमर्दे ॥ १ ॥
सा मल्ली वर्धमाना=अनुदिन वृद्धि गता, भगवती - ऐश्वर्यादिगुणयुक्ता, "लोकच्युता देवलोकादनुत्तरविमानान्च्युता=अवतीर्णा, अनुपम श्रीका=अद्वितीय शोभायुक्ता, दासीदास परिवृता, पीठमदैः यस्यैः परिकीर्णा = परिकरवती बहु सहचरी युक्तेत्यर्थः ।
असितशिरोजा सुनयना निम्बोष्ठी घालदन्तपक्तिका । वरकमलकोमलागी फुल्लोत्पलगन्धनिःश्वासा ॥ २ ॥
असित शिरोना=भ्रमरवदतिश्यामवर्णकेशा, सुनयना = सुलोचना, बिम्बोष्ठी =विम्वद्रक्तवर्णोष्ठी, धवलदन्तपक्तिका धवला कुन्दमुक्तादियच्छुक्लवर्णा दन्त पक्तिर्दन्तश्रेणिका यस्याः सा तथा, वरकमलकोमलाङ्गी = रकमलनत् - अशुष्क कमलपुष्पवत् कोमलानि मृदुलान्यङ्गानि यस्याः सा तथा, फुल्लोत्पलगन्धनि. श्वासा-विकसितनीलकमलगन्धयुक्तनि श्वासवती जाता ॥ सू० १२ ॥
माताधर्मकथासूत्रे
जिस प्रकार भगवती सूत्र में महावल का वर्णन किया गया हैउसी प्रकार से इन मत्ली का भी वर्णन जानना चाहिये-सूत्रकार इसी यान का वर्णन " सा कइ " इस गाधा द्वारा करते है-वे कहते है कि ये मल्लि नाम की कन्या प्रतिदिन वृद्धिंगत हो रही थी । ऐश्वर्य आदि गुणों से युक्त थी । अणुत्तर विमान से चव कर आई थी अनुपम श्री से सपन्न थी । दासी दास परिवृत्त थी और अनेक सहचरियों से युक्त ' थी।
उनके बाल भ्रमर के समान अति श्याम वर्ण वाले थे । लोचन बड़े सुहावने थे । बिम्ब जैसे लाल वर्ण वाले इनके दोनो ओठ थे। दांतो की पङ्क्ति कुन्द तथा मुक्का आदि के समान बिलकुल शुभ्र थी । अशुष्क જાણુવુ જોઇએ t सा वद्धइ" या गाथा वडे सूनअर से बात स्पष्ट ४२१ માગે છે તેએ વર્ણન કરતા કહે છે કે મલ્ટિ નામે કન્યા દિવસે દિવસે માટી થઈ રહી હતી તે અશ્વય વગેરે ગુોથી પૂણુ હતી તે અનુત્તર વિમા નથી ચવીને આવી હતી અને અનુપમ શ્રા સપન્ન હતી તે દાસી દાસેથી વીટળાયેલી તેમજ ઘણી સહચરીઓથી યુક્ત હતી
તેમના વાળ ભમરા જેવા અત્યત કાળા હતા તેમના નેત્ર મનહેર હતા અને હેઠ ખિમફળ જેવા લાલ હતા તેમની દતપ ક્તિ કુદ તેમજ મેાતી