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ज्ञाताधर्मकथासू
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कुभगस्स कुम्भकस्य कुम्भकनामवस्य राज्ञः ममावत्याः = प्रभावतीनाम्या देव्यः ' कुच्छिमि ' कुक्षौ ' आहाररक्कतीए ' आहारव्युत्क्रान्त्या=आहारपरिवर्त नेन मनुष्योचिताहारग्रहणेनेत्यर्थः, 'सरीरवरकतीए ' शरीरव्युस्कान्तया = देवश परिवर्तनपूर्वक मनुष्यशरीरग्रहणेनेत्यर्थ भररक्कतीए भाव्युकान्या = ' देवभव विहाय मनुष्यभरग्रहणेन 'गन्मत्ताए नक्कते' गर्भतया व्युत्क्रान्तः = गर्भरू पेण समुत्पन्नः । तस्या रजन्यां च खलु चतुर्दश महास्माः ममानती देव्या दृष्ट | हे वासे) भरत क्षेत्र मे ( मिहिलाए रामराणीग ) मिथिला राजधानी में (कुभगस्स रन्नो पभा देवी कुच्छिसि कुभक राजाकी प्रभावती देवी की कुक्षि मे ( आहार वक्कनीए) आहार के परिवर्तन से - मनुष्यो चित आहार के ग्रहण से, ( सरीरवक्कनीए ) शरीर की व्युत्क्रान्ति से देव शरीर के परिवर्तन पूर्वक मनुष्य शरीर के ग्रहण से, (भव वक्क तीए ) भव की व्युत्क्राति से देव भव को छोड़कर मनुष्य भव के ग्रहण से ( भत्ता वक्क ते) गर्भरूप से उत्पन्न हुए ।
जब यह प्रभावती की कुक्षी मे गर्भ रूप से उत्पन्न हुए तब (गहे सु उच्चट्टानट्ठिएस) सूर्यादिग्रह उच्चस्थान पर स्थित थे । ( दिसासु सोमासु ) चारों दिशाये दिग्दाह आदि उपद्रयों से रहित थी ( विति मिरासु विद्वासु ) तीर्थकर के गर्भावाम के प्रभाव से वे अन्धकार रहित वन गई थीं एव अझावात रजकण आदि से रहित हो कर निर्मल हो गई थी ।
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भरत क्षेत्रमा ' 'मिहिलाए रायद्दाणीए " मिथिला राज्धानीमा कुभगासरन्ना पभावइए देवीए कुच्छिसि "हुल राजनी अलावती हेवीना उरभा " आहार वक्कतीए " भाडाराना परिवर्तनथी मानवोचित आहारना अबुथी " सरीर वक्कतीए " शरीरनी व्युष्अतिथी भेटते द्वेव शरीरना परिवर्तन तेमन मनुष्य शरीरना श्रद्धलुथी " भववक्कतौए " लवनी व्युष्मतिथी देव लवने ત્યજીને મનુષ્ય ભવને ગ્રહણ કરવાની આપેક્ષાથી गन्ताए वक्कते " ગ રૂપે જન્મ પામ્યા
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न्यारे तेथे। प्रभावतीना उडरमा गर्ल३ये भवतय त्यारे " महेसु उच्चद्वाण ट्ठिए સૂર્ય વગેરે ગ્રહે! ઉચ્ચ સ્થાને હતા વિસાસુ સોમાણુ ચારે દિશાએ દિગ્દાડુ વગેરે ઉપદ્રા વગરની હતી " वितिमिरासु विसुद्धासु તીર્થંકર ના ગર્ભવાસના પ્રભાવથી દિશાએ પ્રકાશ યુક્ત તેમજ ઝ્રઝ્રનિલ રજકણ વગેરેથી રહિત થઈને સ્વચ્છ બની ગઈ.