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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ८ महाबलादिपट् राजचरितनिरूपणम् २७५
चारुपर्यंत चारुनामक पर्वत ' दुमहति ' दुरोहन्ति = आरोहन्ति, ' दुरुहित्ता' दूरध =आरुह्य यानद् पृथिवीशिलापट्टक प्रमार्ण्य पादपोपगमन स्त्रीकृत्य द्विमासिक्यासलेखनया सर्विशतिक भक्तरात 'चउरासीइ वाससय सहस्साह' चतुरशीर्ति वर्पशतसहस्राणि= चतुरशीतिलक्षवर्षाणि श्रामण्यपर्याय = चारित्रपर्याय पालयन्ति, पालयित्वा चतुरशीविं पूर्वशत सदस्राणि चतुरशीतिलक्षपूर्वाणि सर्वायु' पालयित्वा जयन्ते निमाने देवतयोपपन्ना: देवत्वेनोपपातमुत्पत्ति प्राप्ताः ।
तन वलु अस्त्येक काना देवाना द्वात्रिंशत्सागरोपमाणि यावत् स्थिति । तत्र खलु महावलवजना पण्णा देवाना देशोनानि द्वात्रिंशत्सागरोपमाणि स्थितिः । महावलम्य देवस्य प्रतिपूर्णानि द्वात्रिंशत्सागरोपमाणि स्थितिर्जाता || सू०८ ॥ इस तरह ये सानों ही अनगार भगवत स्थविरो से आज्ञा लेकर चारु नाम के पर्वत पर पहुँचे वहा पहुँच कर उन्हों ने वहां के शिलापट्टक की प्रमार्जमा की - बाद मे पादपोपगमन सधारा धारण कर लिया । दो मास की सलेखना से १२० भक्तो का छेदन कर उन्हों ने ८४ लाख वर्ष तक श्रामण्य पर्याय का पालक किया ।
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इस तरह अपनी ८४ लाख पूर्व की समस्त आयु समाप्त कर अन्त में देह का परित्याग कर वे पांच अनुत्तर विमान के अन्दर जयन्त विमान मे ( तत्यण अत्थे गहयाण देवाण बत्तीस सागरोवमाइ० ठिई तत्यण महव्यलवज्जाण उन्ह देवाण देणाङ बत्तीस सागरोवमा इठि महव्यलस्स देवस्स पडिपुन्नाड बत्तीस सागरोवमाह ठिई ) वहां कितने क देवो की बत्तीस सागर प्रमाण स्थिति है सो महानल को छोड़कर छह देवो की स्थिति कुछ कम बत्तीस सागर की हुई और महानल की स्थिति पूर्ण छत्तीस मागर की हुई । " सूत्र ९
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ભગવત સ્થવિરાની આજ્ઞા પ્રાપ્ત કરીને ચારુ નામે પ°ત ઉપર પહાચ્યા ત્યા પહેાચીને તેઓએ પાપાપગમન સથારી ધારણ કર્યાં
આ પ્રમાણે પેાતાના ૮૪ લાખ પૂર્વનું સપૂર્ણ આયુષ્ય પૂરુ કીને અન્તે દેહ છેડીને તે પાચ અનુત્તર વિમાનમા જયન્ત નામના વિમામા દેવના પર્યાયથી જન્મ પામ્યા
(तत्थण त्या देवाण बत्तीस सागरीवमाइ० ठिई - तत्यण महन्नल चज्जाण उण्ह दवा देमृलाइ बत्तीस सागरोत्रमाह ठिई )
ત્યના કેટલાક દેવાની ખત્રીશ સાગર પ્રમાણુ સ્થિતિ છે મહાબલને ખાદ કરતા બીજા ૭ દેવાની સ્થિતિ અત્રીશ સાગર પ્રમાણમા ઘેાડી એછી થઇ અને મહાખલની સ્થિતિ પૂરી ખત્રીરા સાગર જેટલી થઇ ! સૂત્ર
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