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________________ भारतविंग टीका अ ध यसार्थवाहचरितनिरूपणम २३१ ततः खलु सा रोहिणी सुबक शकटीशाकट गृहीला यत्रैव स्वक कुलगृह = पितृगृह तत्रैवोपागन्छति, उपागत्य कोष्ठागाराणि= कोष्ठगृहाणि ' विहाडे३ ' विघटयति= उद्घाटयति, विघटय पल्लान् = शालिकोष्ठान् ' उम्भिदेह' उद्भिनत्ति = उन्मुद्रितान् करोति, तेपामुद्रापयतीत्पर्य, उद्भिद्य शकटीशाकट भरति, भृला राजगृह नगर मध्य मध्येन यौन रूपक गृह यत्रेव धन्यः सार्थवाहस्तत्रैवोपागच्छति । तत्र' खल राजगृहे नगरे शृङ्गाटक यावत्- महापथपथेषु बहुजनोऽन्योन्यमेनमाख्याति सगडी सागड गहाय जेणेव सप कुलघरे तेणेव उवागच्छर, उवाग छिन्ता कोहागारे विहाडे ) इस तरह रोहिणिका के वचन सुनकर धन्य सार्थवाहने उसे अनेक शकटी और शकों को दिया वह रोहिणि का उन अनेक शकटी और शकटो को लेकर जहां अपना कुलगृह था वहा पहुँची - पहुच कर उसने वहां के कोष्ठागार को उपाडा ( बिहाडित्ता पल्ल उभिदइ ) उघाड कर वहा रक्खे हुए शालि कोठों को खोला उन्हें मुद्रा रहित किया - ( उभिदित्ता सगडीसागड भरेइ ) बाद में उनसे अनेक शकटी और शकटो को भरा (भरिता रायगिह नयर मज्झ मज्ोण जेणेव सए गिहे जेणेव धण्णे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छह) भर कर राजगृह नगर के ठीक बीचो बीच के मार्ग से होकर वह जहां अपना घर या और जहा धन्य सार्थवाह थे वहा पहुँची - (नण्ण रायगिहे नपरे सिंगाडग जाव बहुजणो अन्नमन्न एवमाइक्खड, वण्णेण तएण सा रोहिणीं सुनहु सगडीसागड गहाय जेणेत्र सए कुलघरे तेणेन उवागच्छ, उवागाच्छित्ता कोट्ठागारे बिहाडेई ) આ રીતે હિણિકાની વાત સાભળીને ધન્યસાવાડે તેને ઘણી નાની માટી ગાડીઓ આપી રાહિણિકા તે બધી નાની મેટી ગાડીઓને લઈને જા पोतानु पिनर हेतु त्या भावी त्या भात्रीने तेथे त्याना आहार उधाउये (बिहाष्टत्ता पल्ल उभिदइ ) त्या२साह त्या भूसा शदिना डोठारीने उधाया ( उभिदि तासगडी सागड भरेइ ) अने तेमनाथी नानी मोटी धार्थी गाडीओने भरी ( भरिता रायगिह नयर मज्झ मज्झेण जेणेत्र सए गिहे जेणेव घण्णे सत्थवाहे तेणे उपागच्छइ ) ભરીને રાજગૃહ નગરના ઠીક મધ્ય માર્ગે થઈને જ્યા તેનુ પોતાનુ ઘર અને જ્યા ધન્યસા વાહ હતા ત્યા પહાચી ( तपण रायगिद्दे नगरे सिंघाडग जात्र बहुजणो अन्नमन्नएमा,
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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