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ज्ञाताधर्मकथासूत्रे
उपगत्य तदाज्ञामीकृत्य हि जनपदविहार कर्तुमित्यर्थ । एव अमुना मका रेण सप्रेक्षन्ते परस्पर पर्यालोचयन्ति, समेय पर्या दोन्य शैलक 'राय' राजान राजर्षिमित्यर्थ उपसपध = उपेत्य तदाशामादाय विहरन्ति ॥ ३४ ॥
मूलम् तपणं सेलए पथगपामोक्खा पंच अणगारसया वहूणि वासाणि सामन्नपरियाग पाउणित्ता जेणेव पोंडरीये पव्त्रए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता जहेव यावच्चापुत्ते तहेव सिद्धा । एवामेव समणाउसो जो अम्ह निग्गंथो वा निग्गंथी वा जाव विहरिस्es |
एव खल जंबू । समणेण भगवया महावीरेण जाव संप' तेणं पंचमस्स णायज्झयणस्स अयमट्टे पण्णत्तेत्ति वेमि ॥३५॥
॥ पचम णायज्झयण समन्त ॥
पहिले कर दी गई है । ( त सेय खलु देवाणुप्पिया । अम्ह सेलय उब सज्जित्ताणं विहरित ) इसलिये हे देवानुप्रियो 'अब हम लोगो को यही उचित-कल्याण कारक मार्ग है कि हम सब उन शैलक राजऋषि की आज्ञा को अगीकार कर बाहर जनपदों में विहार करें।
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( एव सपेर्हेति ) इस प्रकार उन्होंने विचार किया - (सपेहिता सेलय राय उपसपजित्ताण विहरति ) विचार कर वे सब के सब शैलक राजा - राजऋषि के पास पहुॅचे और उनकी आज्ञा लेकर बिहार करने लगे | सूत्र ॥ ३४ ॥
व्यभ्या पहेला श्वामा भावी छे ( त सेय खलु देवापिया ! अम्ह सेल्य उवसपज्जित्ताण विहरितए) मेथी हे हेवानुप्रियो । અમારા માટે એજ હિતાવહ છે કે અમે બધા તે શૈલક રાજઋષિની આજ્ઞા મેળવીને બહાર ના જનદેમા વિહાર માટે નીકળીએ
( एव सपेहेंति) या प्रभो विचार अर्यो ( सपेहित्ता सेलय राय उपसप जित्ताण विहरति ) विचार पुरीने तेथे मघा शेव रापिनी पासे गया અને તેમની આજ્ઞા મેળવીને વિહાર કરવા લાગ્યા! સૂત્ર “ ૩૪ ” ૫
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