________________
% 3D
माताधर्मकथासूत्र एसणिज्ज पीढफलगसेज्जासथारग ओगिणिहत्ताण विहरइ, तएणं से सेलए अणगारे मंडुयस्स रन्नो एयमह तहत्ति पडिसुणेइ, तएणं से मडुए सेलयं वदइ नमसइ पदित्ता नमसित्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए ॥ सू० २९ ॥
टीकार्थ--'तएण तस्स' इत्यादि। ततस्तदनन्तर खलु तस्य शेलकस्य राजर्षे स्तैः अनगारधर्मानुसारेग माप्तैः । अतेहि ' जन्तःबल्लचणकादिभि., 'पतेहि , पान्तः पर्युपित , 'तुच्छेडिय' तुच्छै अल्पैश्व 'लूहे हिय' रुक्षः अस्नि
'तएण तस्स सेलगस्स ' इत्यादि । टीकार्थ-(तएण)इसके बाद (पयइ सुकुमालयस्स सुहोचियस्स) प्रकृति सुकुमार तथा सुखोपभोग के योग्य (तस्स सेलगस्स रायरिसिस्स) उस शैलक राजाषि के (मरीरगसि) शरीर में (तेहिं अतेहिं य पतेहिं य तुच्छे हिं य लहे हिं अरसे हिं य विरसेहि य सीएहिं य, उण्हेहिं य कालाइक्कते हिं य पमाणाहरकते हि य, णिच्च पाणभोयणे हिं य) अनगार धर्म के अनुसार प्राप्त हुए अन्त प्रान्त, तुच्छ, रूक्ष, अरस, विरस, शीत, उष्ण, तथा कालातिक्रान्त (असमय मे ) नित्य पान भोजन आहार करने से (वेयणा पाउन्भूया) वेदना प्रकट हुई । बल्ल चणक आदि का नाम अत हैं। पर्युषित (वासी) अन्न का नाम प्रान्त है। अल्प आहार का नाम तुच्छ है । स्निग्धता (घृतादि) रहित आहार का
(तएण तस्स सेलगरस इत्यादि)
सार्थ-(तएण) त्या२ मा (पयइ सुकुमालयस्स सुहोचियस्सो शरीरनी प्रति सुमार तेमाल आराम साग। येश्य (तस्स से लगस्स रायरिसिस्स) • *पि ५ ( सरीरंगसि ) ना शरीरमा (तेहिं अतेहिंय पतेहि य तुच्छेहिं व
लहेहि अरसेहिं य विरसे हिय सीएहिं य उण्हेहिय कालाइक्क तेहिय पमाणाई कतेहिंय, णिच्च पाणभोयणेहिंय ) सनसार थम भुसा था अन्य, मात, तु२७, १क्ष, २०२, विरस, शीत, BY तेभर सयभय (सातित) भा भेशा पान, मेन (मा२) ७२पाथी ( वेयणा पाउन्भूया) वहना થવા વાગી બલિ ચણક (ચણા) વગેરે “અત” કહેવાય છે વાસી આહાર નુનામ “પર્યુંષિત છે ચેડા આહારનું નામ તુચ્છ છે સ્નિગ્ધતા (ઘી હિત) વગર આહાર અક્ષ કહેવાય છે હિગ વગેરેના વઘાર વગરના આહારને
-
-