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अनगार धर्मामृतवर्षिणी टीधा अ० ५ शैल्कराजचरितनिरूपणम्
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नानादीत् क्षिप्रमेव शीतमेन मेा देवानुनियाः शैलम्पुर नगरम् ' आसित्तसमजिओनलित ' आसिक्त समार्जितोपलिप्त = आसिक्तम् जलेनाऽऽर्द्रीकृत, समार्जित समार्जन्या कचवरायपमारणेन सशुद्ध उपलिप्त गोमयादिना सलिप्त, गन्धोदकसिक्त पुनर्गन्धोदकेन प्रसिक्त गन्धवर्तिभृत अगरनर्विरूप सुगन्धमय यूप कुरुत, अन्यैश्थ कारयत कृत्वा च कारयित्वा च 'एयमाणत्तिय' एनामाज्ञप्तिका = एता ममाज्ञा मत्यर्पयत = मनदादिष्ट कार्य सर्व सपादितमस्माभिरित्या वेदयतेत्यर्थः । तत खलु स मण्डको राजा 'दोन्चवि' द्वितीयमपि द्वितीयवारमपि कौटुम्बिकपुस्पान=आदेशकारिण: पुरुषान् शब्दयति = आइति शब्दयित्वा एवमवादीत्
इसके बाद मडुक राजा ने कौटुबिक पुरुषो को बुलाया (सावित्त एव घयासी ) बुलाकर उन से ऐसा कहा ( खिप्पामेव भो देवाणुप्रिया ! सेलगपुर नगर आमित्त समज्जिओ वलित्त गधवट्टिभूत्त करेहय कारवेय) भो देवानुप्रियो । तुम लोग शीघ्र ही शैलकपुर नगर को जल से छिडको मिचित करो, कच वर आदि के अपनयन से उसे साफ करो, गोमयादि से उसे लीपो गधोदक से उसे बार २ सिक्त प्रसिक्त करो गधवर्त्तिरूप करो- सुगधमय करो, तथा दूसरो से कर वाओ । ( करिता कारवित्ता य ण्यमाणत्ति य पच्चष्पिण ) कर के और करा पीछे हमें इस आज्ञा के पालन की खबर दो हमने आप की आज्ञानुसार मय कार्य संपादित कर दिया है- ऐसा पीछे हमे समाचार दो (या से मडुए राया दोच्चपि कौटुबियपुरिसे सहावेह, सद्दावित्ता एव वयासी ) इसके बाद मडूक राजा ने दुबारा भी
पुरुषाने मोलाच्या ( सद्दावित्ता एव वयासी ) गोसावीने या प्रभा - ( सिप्पामेव भो देनाणुनिया 1 सेलगपुर नगर आसित्तसमनिओलित्त गधपट्टिभूत क्रेय कारवेश्य ) हे हेवानुप्रियो ! तमे शेसरने पालीथी સત્વરે સિચિત કરો કચરા વગેરે સાફ કરીને, છાણુ વગેરેથી લીપે તેમજ સુવાસિત પાણીથી વાર વાર તેને મિચિત કરી અને તેને ગધતિ એટલે કે ધૂપસળીની જેમ સુવાસિન અનાવા તેમજ ખાએથી સુવાસમય અનાવડાવે (करिता वारवित्ताय एयमाणत्तिय पच्चपिण) या प्रमाणे लते उने भने श्रीभगोनी पानेथी उरावडावीने जम चु३ ध्यानु भने न्यानो ( तएण से मुडए या दोन्च पि कोडु धियपुरिसे सद्दानेइ, सद्दानित्ता एन वयामी ) ત્યાર બાદ મહૂક ગાએ ખીજી વખત કૌટુંબિક પુરુષેને મેલાવ્યા અને