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अनगारधर्मामृतविण टीका अ० ५ शैलराजवरिनिरूपणम्
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जइणं देवाणु तुभे ससार जाव पव्वयह त गच्छह णं देवा० सएस २ कुटुंबे जेट्टे पुत्ते कुडुबमज्झे ठावेत्ता पुरिससहस्स वाहिणिओ सीयाओ दुरूढा समाणा मम अंतियं पाउव्भवहत्ति, तहेव पाउञ्भवति ।
तणं से सेलए राया पच मतिसयाई पाउव्भवमाणाई - पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठे कोडुविय पुरिमे सदावेइ, सदावित्ता एव वयासी - खिप्पामेव भो देवाशुप्पिया। मडुयस्स कुमारस्त महत्थ जाव रायाभिसेय उट्ठवेह० अभिसिचाइ जात्र राया यावद् विहरइ ॥ सू० २७ ॥
टीका - ततस्तदनन्तर खलु स शुकोऽन्यदा = अन्यस्मिन् काले, कदाचित् कस्मिंश्चित् समये यनैव शैलकपुर नाम नगर यनैव सुभूमिभाग= सुभूमिभागनामकम् उद्यान ' तेणे समोसरिए ' तनैव समवसृतः समागत । परिपन्निर्गता = शैलकपुर नगरनिवासिना जनानासहतिः शुकनामाऽनगार समागत श्रुत्वा व वन्दितु शैलक पुरनगरार्नित्यर्थ । शैलकोsपि निर्गतः शैलफनामा नृपोऽपि शुकमनगार वन्दितु नगरादहिर्निःसृत' । निर्गत्य यौनशुकोनगारस्तत्रोपागच्छति । अथ
'तणं से सुए' इत्यादि
टीनार्थ - ( नए) इसके बाद (से सुए) वे शुक अनगार (अनया कथाड) किसी एक समय ( जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव समोसरिए) जहा शैलकपुर नाम का नगर और उम में भी जहा सुभृमिभाग नाम का उद्यान था वहा विहार करते २ आये ( परिमा निग्गया सेलओ निग्गओ, धम्म सोचा जाव देवाणुविद्या पथगपामोखाइ पचमतिस ( तरण से सुए
इत्यादि।
टी अर्थ -- सएण ) त्यारणाह ( से मुए ) शु४ अनगार (अन्नया कयाइ) मेड चमते ( जेणेत्र सेलगपुरे नयरे जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेत्र समा सरिए ) क्या रौस र नाभे नगर अने तेमा पशु क्या सुभृभि लाग नाभे विधान हेतु त्या विहार उस्ता उस्ता साव्या ( परिसा निगाया सेल्ओ निशा ओ धम्म सोचा जाव देवाणुप्पिया पथगपामोक्साइ पचमतिसयाइ आपु