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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ ४. गुप्तेन्द्रियत्वे कच्छपशृगालद्रप्टान्त ७२९
आहारार्थिनी यावद् आहारं गवेषयमाणो मालुकाकक्षकात् 'पडि निक्खमंति' पतिनिष्क्रमत-प्रतिनिर्गतो, 'पडिनिक्खमित्ता' प्रतिनिष्कस्य यत्रैव मृतगङ्गातीरो दस्तत्रैव उपागच्छतः, उपागत्य मृतगङ्गातीरदस्य परिपर्यन्ते तटभागे धूर्णमानौ वृत्ति कल्पयन्तौ विहरतः। ततःखलु तौ पापशृगालौ तौ कूर्मको पश्यतः, दृष्ट्वा यत्रैव तौ कूर्मको तत्रैव 'पहारेत्य गमगाए' प्राधारयतां गमनाय गन्तुं समुत्सुको जातौ । म् ५॥ ___ मूलम्--तएणं ते कुम्मगा ते पावसियालए एजमाणे पासंति, पासित्ता भीता तत्थो तसिया उब्विग्गा संजायभया हत्थे य पादे य गीवाए य सरहिं २ काएहिं साहरांति, साहरित्ता णिचला णिफंदा तुसिणीया संचिटुंति. ।। सू. ६॥ (आहारत्थी) आहार के अर्थी होकर (जाव आहार गवेसमाणा) यावत् आहार की गवेषणा करते हुए (मालुयाकच्छयाओ पडिनिक्खमति) उस मालुयाकच्छ से निकले (पडिनिक्खमित्ता जे व मयंगतीरे दहे) निकल कर जहां वह मृतगंगातीर हृद था (तेणेव उवागच्छंति) वहां आये (उवागच्छित्ता तस्सेव मयंगतीरदहस्स परिपेरतेग परिघोलेमाणा २ वित्तिकप्पेमाणा विहरंति) आकर वे उसी मृतगगोतीर हूद के तट पर इधरसे उधर घूमने लगे और उदरपूर्ति करने का विचार करने लगे और (तरण ते पाव सियाला ते कुम्मए पासंति) इतने में उन दोनों पापी शृगालोंने उन दोनों कच्छपोंको देखा पासिना जेणेव ते कुम्मए तेणेव पहारेत्थ गमगाए) देखकर वे दोनों के दोनों जहां वे कच्छए थे वहां जाने के लिये उत्कठित हो गये ॥ ५ ॥ (आहारत्थी) मा.२ मेगवानी २७ाथी (जाव आहारं गवे समाणा) माडानी शोध ४२ता (मालुया कच्छयाओ पडिणिक्खमंति) भा४।४२७नी पार नी४ज्या. (पडिनिक्वमित्ता जेणेक मयंगतीरेदहे) ७१२ २वीन ज्या भृत गातार
डू हेतु (तेणेष (उबागच्छंति) त्यां मा०या. उवागच्छित्ता तस्सेव मयं गतीरदहस्स परिपेरंतेणं परिघोले माणार विनि कप्पेमाणा विहरति) मावान मृत ॥
તીર છંદના કાંઠે આમ તેમ આંટા મારતા ભૂખને શાંત કરવાનો વિચાર કરવા લાગ્યા. (तए ण ते पावसियाला ते कुम्मए पासंति) मे मते पने पापी श्रावनी १२ मने आया ५२ ५डी. (पासित्ता जेणेव ते कुम्मए तेणे पहारेत्थ गमणाए) न.२ ५३ता ४ ने श्रास त्यांना भाटे तत्५२ २७ गया सू । ५।