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________________ अनगारधर्मामृतणाटीका अ ३ जिनदत्त-सागरदत्तचरित्रम् ६६५ निस्सरतः प्रतिष्क्रिम्य 'हत्थसंगेल्लिना-अन्योन्यं हस्तावलम्बनेन सुभूमिभागे उद्याने बहुषु 'आलिघरएसु' आलिगृह के घु श्रेणिबद्धगृहाकारपरिणतवनम्पतिविशेपनिकुञ्जषु च-पुनः ‘कयलीवरेसु' कदली गृह केषु-कदली निकुन्जेषु च 'लयाघरएमु' लतागृहकेपु-चंपकाशोकादिलतागृहेषु च 'अच्छणघरएसु' आसनग्रहके आसन-उपवेशनम् तेपां गृहेषु यदा तदा जना आगत्य सुखासिकथोपविशन्ति यत्र तत्र च 'पेच्छणघरएस' प्रेक्षणगृह केतु-पक्षण-प्रेक्षणकं तस्यगृहेषु-पत्रागत्य जना नाटकादिक कुर्वन्ति प्रेक्षन्ते च तेषु 'पसाहणघरएमु य प्रसाधनगृहकेषु प्रसाधने मण्डन यत्रागत्य जना स्व परं च मण्डयन्ति तेषां गृहेषु 'मोहणघरएसु' मोहनगृह केपु-विलासगृहेषु 'सालघरएमु' शाला गृहकेषु शाला शाखा तासां गृहेषु वस्त्रगृहेषु बा' जालघरएम' जालगृह केपुजालिकान्वितगृहेषु यत्राभ्यन्तरस्थिता बहिः स्थित ने दृश्यन्ते किन्तु अन्तः गणिका के साथ (थूणामंडवाओं पडिनिक्खमंति) उस स्थणामंडप मे बाहर निकले (पडिनिक्खमित्ता) बाहर निकल कर (हत्थसंगेल्लीए) हाथ में हाथ मिलाए हुए वे (सुभूभिमागे उजाणे बहुसु आलिघरएसुय) उस सुभूमिभाग उद्यान में अनेक श्रेणिवद्ध गृहाकार परिणत हुए वनस्पति विशेषों के निकुंजों में (कयलीघरएसु य लयावरएसुय) कदलीगृहो में और लतागृहोमें (अच्छण घरएसु य) यदा कदा आई हुई जनता को बैठने के लिये बनाये हुए आमन गृहों में(पेच्छणघरएसुय) जहां पर आकर के जन नाटक आदि करने हैं और देग्वते है उन प्रेक्षण घरों में (पसाहणघरएमु य) प्रसाधन गृहों में-जहाँ आकर के मनुष्य अपने को और दूसरो को अलंकारो से विभूषित करते हैं ऐसे 'घरोंमें (मोहणघरएमुय) विलास गृहो में (मालघरएमु य शालो घरों में (जालघरएसु य) जालिकान्वित घरों में जिनके भीतर रहे हुए (पडिनिक्खमित्ता) मा नloीन (हत्थस गेल्लीए) डायमा डाय नाणीने तमा (मुभूमीभागे उज्जाणे बहुसु आलिघरएसु य) सुभूमिला Bधानमा मासा ઘણું શ્રેણિબદ્ધ ઘરના આકાર જેવા વનસ્પતિ વિશેપોથી બનાવવામાં આવેલા નિકુંજોમાં (कयलोघरएमु य लयाघरएसु य). seी गृडामा, ताडाभा, (अच्छणघरएस य) मानवा आता सामाभिने सपा भाटे नावामा मायेसा मासनमा (पेच्छणघरएसु य) भाणुसो न्यो मापीन नाट वगेरे ४२ छ भने तुणे तेवा प्रेक्षाडामा (पसाहणघरएमु य) प्रसाधन लाभा मेटो त्या माणुसो पातानी जतने भने मानसाने शगारेछ, तेवा घशेमां, मोहणघरएसु या विसासडामा (सालघरगा य) शाणायाम (जालघरएसु य) atm यसमा गेट
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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