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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. २ स. ८ देवदत्तवर्णनम् દરર वजयो नाम तस्करः यावद् गृन इवामिषभक्षी बालघातको बालमारकोऽस्ति तत्-तस्मात्काणात् नो खलु देवानुमियाः ! एतस्य कोऽकि राजा वा राजपुत्री वा राजामात्यो वा 'अवरज्झइ' अपराध्यतिन कोऽप्यन्य एनं पीडयतीत्यर्थः. किन्तु 'एत्थटे अत्रार्थ एतद्विषये 'अप्पणो' आत्मनः निजस्य ‘सयाईकम्माई' स्वकानि कर्माणि-स्वकृतान्येव कर्माणि 'अवरज्झति' अपराध्यन्ति एनं पीडयन्ति, 'उक' इति प्राच्य यत्रब चारगसाला' एवं वयंति) राजगृह नगर में आकरके वहां के शृगाटक, त्रिक चतुपक चत्वर और महापथ इन सब मार्गो में उन्होंने उस विजय चोर को कोडों से बेतो से चिकने किये हुए कोडों--से बार बार और भी बुरी तरह पीटते हुए उसके ऊपर भस्म धूली और तृण आदि का कडा करकट बार २ डालते हुए फिर इस प्रकार जोर जोर से घोपण की--(एएणं देवाणुप्पिया विजए नामं तक्करे जात्र गिद्धे विव आमिपभक्खी बालघायए वालमारए) हे देवानुप्रियो ! यह विनय नाना चोर है। यह गृद्ध पक्षी की तरह आमिष (मांस) का भक्षो है बाल घातक है और वाल मारक है। (तं नो ग्वल देवानुप्पिया! एयस्स केड राया वा रायपुरिसे वा रायमच्चे वा अवरज्झड) मो हे देवानुमियों! इस विषय में इनका न कोई राजा अपराधो है. न राजपुत्र अपराधी है और न राना का प्रधान अपराधो है। (एयम अप्पणो मयाई कम्म अवर झंति) किन्तु इसके निज कृत कर्म ही अपराधी बने हुए हैं। (तिकडे) एग कहकर (जेणामेव चारगसाला तेणामेव उवागच्छंति) वे મૃગાટક, ત્રિક, ચતુષ્ક ચત્ર અને મહાપથ આ બધા માર્ગો ઉપર કેરડા, વેત અને ચીકણું કરાએલા કેરડાઓથી સખત રીતે વિજયચારને મારતા અને વારંવાર तेना ५२ राम, माटीमने यश वगेरे नमिता २६ भोटेथी बाप (८ ।) ४री (एसणु देवाणुप्पिया विजए नाम तक्करे जाव गिद्ध विन आमिम भावी वालघायए वालमारए) हेवानुप्रिया | 241 विन्य नामे यो२ छ ગીધની જેમ આ માસ ખાનારે છે, બાળ ઘાતી છે અને બાળ હત્યારે છે (ननो खलु देवाणुपिया! एयस्म केड राया वा रायपुत्त वा रायमच्चे वा अवरज्झह) मेट है वातुनियो। मा वि सपा शत शत अपराधी નથી, રાજપુત્ર અપરાધી નથી, તેમજ રાજાના પ્રધાન પણ અપરાધી નથી (एयमढे अप्पणो सयाइ अम्मइ अवरज्झति) ५Y मरी शते सेना पोताना भी मेने अपराधी सामित ४२ छ. (तिका) माम डीन (जेणामेव
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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