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धर्मातणीटीका अ १ ग्रु ४५ मेघसुतिं प्रति भगवदुपदेशः यिकादीनि एकादशाङ्गानि अधीते, प्रधीत्य बहुभिचतुर्थपाष्टमदशमद्वादशैः मासार्धमा सक्षपणैरात्मान भावयन् विहरति । ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरो मेघानगारादिनिवृन्दैः सार्धं राजगृहानगराद् गुणकिलकात्यात प्रनिनिष्क्रामति, प्रतिनिष्क्रम्य पतिर्जनपदविहार विहरति । छु ।४५ |
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मूलम् —-तपणं से सेहे अणगारे अन्नया कपाई समणं भगवं महावीरं बंदइ नमंसड़ वंदिता नमसित्ता एवं वयासी - इच्छामि णं भंते! तुमेहिं अम्भणुन्नाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उवसंसमणस्स भगाओ महावीरस्स एयाख्याणां थेराणां श्रुतिए सामाइयमाइयाई इक्कार अंगाई अहिज्जइ) इसके बाद वे मेघकुमार अनगार श्रमण भग भान महावीर के तथारूप स्थविरों के पास सामयिक आदि ११, ग्यारह, अंगों का अध्ययन करने लगे (अहिज्जित्ता बहहिं चउत्थ छट्ठमद समदुवाल सेहिं मासद्धमाखमणेहिं अप्पा भावेमाणे विहर) अध्ययन करके फिर उन्होंने अनेक चतुर्थ, पष्ठे, अण्डस, दशम, द्वादश, भक्तों से और मासअर्ध मास आदितपस्याओं से आत्मा को भावित किया । (तरणं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुण सिलायो चेइयाओ पडिनिक्खमद्द) इसके बाद श्रमण भगवान् महावीरने सेघकुमार आदि अनगारों के साथ राजगृह नगर से उस गुणशिलक चैत्य से विहार किया और - (पडिनिक्वमित्ता बहिया जयविहारं हिर) बिहार कर फिर वे बाहर के जनपदों में विचरने लगे | || मूत्र ४५ ॥ ॥
भगवओ महावीरस्म एयारुवाणं थेराणं अंतिए सामान्यमाइयाई एक्कारस अंग इं अहिज्ज ) त्यार माह भेघकुमार अनगार श्रमण भगवान महावीरना तथा રૂપ સ્થરિની પાસે સામયિક વગેરે અગિયાર અંગાના અભ્યાસ શરુ કર્યાં (અ-િ ज्जित्ता बहु चत्थ मममदुचालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं अप्पाणं भवेमाणे विहरड़ ) अध्ययन र्या माह भेधकुभारे धणा अतुर्थ षष्ठ, अष्टभ, शुभ, દ્વાદશ, ભક્તોથી અને માસ અનાસ ગેરે તપયાએથી આત્માને ભાવિત કર્યાં. (तणं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नयराओ गुणसिलाओ चेहयाओ पडिणिक्खमइ ) त्यार माह श्रभणु भगवान महावीरे भेघकुमार वगेरे अनगारोनी साथै शन्नगृहनगरना गुशुशिला चैत्यथी विहार यो गने ( पडिनिक्खमिता बहिया जणत्रयविहारं (aers ) बिहार ईर्ष्या माह महारना जीन ननयहोमां वियर ફરવા લાગ્યા. ॥ સૂત્ર "" ૪૫ ॥
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