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माता कथासूत्रे
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य, सिहरे व पसारेसु य मंचे व काणणेस य वणेसु वणसेंडस बणगई नदीसु नदीकच्छे सु जूहेसु संगमेसु य व बावीस य पोक्ग्वरिणीसु च दीहियासु य गुंजा लियासु य सरेसु सरपंतियासु य सरसर पंतियासु च वणयर एहिं दिन्नवियारे वह हिं हत्थी हिजाब सहि सपरिबुडे बहुविहतरुपल्लव पउरपाणियतले निए निविग्गे सुहं सुहेणं विहरसि ॥ सू० १०॥
टीका -- 'पण मेहाह' इत्यादि । ततस्तदनन्तरं खन्तु 'हाइ' हे मेव ! इति कोमलसवोधनं कृत्वा श्रमणी भगवान महावीरः सैवकुमारम् एवं= वक्ष्यमाणप्रकारेण श्रवादीत 'से' अथ नूनं निश्चयेन त्वं हे मे 1 'राओ' रात्र प्रवेशवारात्रकालम=मध्ये श्रमणेनिग्रन्यैवचनार्थ मच्छनार्थ परिवर्तनाचे मनुयोगचिन्तार्थ यावत् 'महालियं चणं गई' महत्यांच राणां संचामिचि अच्छि निमिलावेनए' नो शन्कोति मुहूर्त
'नए सेहा समणे इत्यादि ।
टीकार्य - (ग) इस के बाद (महा) हे मंत्रकुमार ! इस प्रकार कोमल आमंत्रण करते हुए (ममणे भगवं महावीरे) श्रमण भगवान् महाचीने (मेह कुमार) मेवकुमार से ( एवं नायामी) इस प्रकार कहा ( से पूर्ण तुम मेहा | गओ पुचरतारतकालसममि) दे मंत्र । तुम रात्रि के पूर्व भाग में और पाज्ञाग में (ममणेहि गिगंधेर्हि) श्रमण निर्गन्धों द्वारा (बायगाए पुच्छा जान महालियंचगणी संचासमुत्तमविच्छि निमिलावेन) वाचना पृच्छना आदि के निमित्त आने जाने पर उनके
टीअर्थ --- ( नाणं) न्यारा ( महाई ) " हे भेघटुभार!" मा लतना मधुर भाषनश्री ( समणे मरावं महावीरे ) श्रमलु भगवान महावीरे ( मेहं कुमारं ) भेटुभरिने ( एवं व्यासी) या प्रमा रात्री पुच्चरत्तावत्तकालय मयंसि ) ऐ मेघ ! शत्रिना चालाना लागभा (ममणेहि निसांचेहि ) श्रभानु निर्थयों द्वारा ( वायणाए पुच्छणाए जाय महालियंच गईणो संचासि मुहुत्तमात्र अच्छे निमिलावेन) ना वगेईना भाटे गावचा स्वाथी तेभना साथण वगेना
( से पूर्ण तुमं सेहा ! पूर्व भागभा भने