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ज्ञाताधर्मकथा
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गुण सिलए चेइए तेणामेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता पुरिससहस्सवाणिओ सीयाओ पञ्च्चोरहइ ||सू० ३६||
टीका- 'तणं' इत्यादि । ततः खलु तस्य मेघकुमारस्य राजगृहस्य नगरस्य मध्यमध्येन निर्गच्छतः 'बहवे अत्यस्थिया' वहवोऽर्थार्थिनः=द्रव्यार्थिनः 'कामथिया' कामार्थिनः स्वेच्छा पूरणार्थिनः यद्वा- शब्दरूपार्थिनः, 'भोगन्थिया' भोगार्थिनःगंधरसस्पर्शार्थिनः, 'लामस्थिया' लाभार्थिनः = पारितोषिकादि प्राप्यर्थिनः, 'किव्वसिया' किल्विपिका - किल्विषं पापमस्ति येषां ते पापवन्तः अनाथान्धपङ्गवादयः, 'करोडिया' करोटिकाः = कापालिकाः खर्परधारिणः भिक्षुका इत्यर्थः ' कारवाहिया' कारवाहिकाः करं राज्ञे देयं द्रव्य वहन्तीति, 'तरणं तस्स मेहस्स कुमारस्स ' इत्यादि ।
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टीका - (तएणं तस्स मेहस्स कुमारस्स ) इसके बाद जब वे मेघ कुमार (रायगिहस्स नगरस्स मज्झं मज्झेणं ) राजगृह नगर के ठीक बीचों बीच होकर (निगच्छमाणस्स ) निकल रहे थे उस समय उन्हें ( बह वे अत्थत्थिया ) अनेक अर्थाभिलाषियोंने ( कामत्थिया ) अनेक कामार्थियोंने--स्वेच्छा पूरणार्थियोंने--अथवा शरूप के अर्थियोंने ( भोगत्थिया ) अनेक भोगार्थियोंने-- गंधरस स्पर्श के अभिलापियोंने-- ( लाभत्थिया ) अनेक लाभार्थियोंने -- पारितोषिक आदि की प्राप्ति की कामनावालौने - (किव्विसिया ) अनेक अनाथ, अन्धे और पण आदि व्यक्तियोंने ( करोडिका ) अनेक खप्परधारियोंने खप्पर धारण करने वाले भिक्षुओंने, ( कारवाहिया ) अनेक कारवाहिकोने -- जिन पर राज्य का टेक्म बकाया था
'तएण तम्स मेहस्स कुमारस्स' इत्यादि
टीअर्थ - (नएणं तस्स मेहस्स कुमारस्त ) त्यारणाह भेघकुभाह ( रायगिस नगरस्स मज्यं मज्झेणं ) रानगृह नगरनी ठी! वस्यो वस्य थाने ( निगच्छ माणस्स ) पसार थर्ध रह्या हता ते वणते तेभने ( बहवे अत्थत्थिया ) धाया अर्थालिसाषीयोमे ( कामस्थिया ) धा अभार्थी नामे पोतानी छाने यूर्भु १२वानी अभिलाषा राणनारा भाणुसोये ( भोगत्थिया) धणा लोगार्थी ओये, भेटसे
अधरस भने स्पर्शना अभिलाषी ने थे, ( लाभत्थिया ) धा साल भेजवબની ઇચ્છા રાખનારા માણસોએ ઈનામ વગેરેને મેળવવાની ઇચ્છાવાળાઓએ, ( किच्चिसिया ) धा अनाथ, भांधजाओ, तेभन अपंग वगेरे भाणुसोमे (करोडिका) धष्णु भग्यश्धारी भिणारी, ( कारवाहिया) घया अश्वाहि अन्ये भेटले