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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका. अ,१ स.३५ मेघकुमारदीक्षोत्सवनिरूपणम् ४०९ णग' वर्धमानक:=शरावचिन्हविशेषः,४, 'भदासण' भद्रासनम् आसनविशेषः५, 'कलस' कलश: कुम्भः६, 'मच्छ' मत्स्यः -मीनं युग्म७, 'दप्पण' दर्पण८, 'तयाणं नरंच णं' इत्यादि-तदनन्तरं च खलु 'पुण्णकलसभिंगारा' पूर्णकलशभृङ्गारा:-जलपूर्ण कलशाः, तथा जलपूर्णा भृङ्गाराः, दिव्याः छत्रपताकाःवमरैः सहिताः, तथा 'दंसणरइया' दर्शनातिदा दृष्टिसुखप्रदा 'आलोइयदरि- -', सणिज्जा' आलोकदर्शनीया-आलोके दृष्टि विषये क्षेत्र स्थिता अत्युच्चत्वारतोऽपि दर्शनीया 'वाउदयविजय जयंतीय' वातोद्धतविजयवैजयन्ना चवायुना प्रचालिता विजयभूचिका वैजयन्ती-पताकाविशेषः, सा वैजयन्ती कीशो-इत्याह 'ऊसिया' उच्छिता, ऊ/कृता तथा-'गगणतलमणुलिहन्ती'गगनतलमनुलिहती-गगनतलस्पशिनी पुरतः यथानुपूव्या क्रमेण संपट्ठिया दिशा में नौ कोणो वाला स्वस्तिक विशेष (बद्धमाणग) वर्धमानक एक शराब 'रूप चिह्न विशेष (भद्दासण) भद्रासन-आसन विशेष, (कलस) कलश-कुम्भ (मच्छ) मत्स्य--मीनयुग्म, (दप्पण) दर्पण (नया णतरं, इम के बाद (पुण्णकलसभिगारा) जलपूर्णकुंभ तथा जल पूर्ण झारो (दिव्ययछत्तपडागा सचामरा दसणरइया आलोयदरिसणिज्जा) चामर सहित दिव्य छत्र पताकाएं,--दृष्टि को सुखप्रदान करने वाली तथा दृष्टि के योग्य विषयभूतक्षेत्र में स्थित होने के कारण दर से दिखलाई पड़ने वाली (वा उद्धयविजयवेजयंनी) ऐसी वायु से कल्पित हुइ विजय सूचक वैजयन्ती, जो (उसिया गगणतलमणुलिहती पुरओ अहाणुपुच्चीए संपढ़िया) बहुत उन्नत थी और इसी कारण जो आकाशनल को छू रही थी। इस प्रकार ये ८ मंगलकारी वस्तुएं यथाक्रम से उम मेघकमार के आगे प्रस्थित हुइ। (तयाणंतरंच) इनके बाद विशेष, (बद्धमाणग) व भान:-2मे शराव ३५ विह्न विशेष, (भदासण) मद्रासन-मासन विशेष, (कलस) ४श-स (मच्छ) मत्स्य थिल-भीन युग्म, (दप्पण) मरीसा, (तयाणंतरं) त्या२ ५७ (पुण्णकलसभिंगारा) या सय ४० पण मरेशी आरी, (दिवाय छत्तपडागा सचामरा दमण रइया आलोयदरिसणिज्जा) यभर सहित हिव्य छत्र अने. धonो, मापाने સુખ પમાડનારી તેમજ યોગ્ય સ્થાને ગોઠવાયેલી હોવાથી દૂરથી પણ નજરે પડતી (वाउय विजयवेजयंती) पवनथी सरानी वियनी सूय वैश्यन्ती धon
ती 37 (उसिया गगणतलमणुलिहंती पुरओ अहाणुपुवीए संपठिया બહુ જ ઊંચે અને આકાશને સ્પર્શ કરી રહી હતી આ પ્રમાણે આ આઠ મંગળ४३री वस्तुमा भेघाभारनी २मा प्रस्थापित ४२वामा भावी ती. (तयाणं પર