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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ १ सू. ३१ मातापितृभ्यां मेघकुमारस्य संवाद ३७५ 'भदं ते' "ते तव भद्रं - कल्याणं भूयात्, 'अजियं जिणाहि' अजितं जय, अजितं देशादिकं जय स्ववशं कुरु 'जिय पालयाहि' जितं पालय, जितं देशादिकं पालय, 'जियमज्झे वसाहि' जितमध्ये वस, वशीकृतमध्ये वस, जितपक्षे निवासेन सुरक्षितो भवेत्यर्थः ' अनियं जिणाहि' अजितं जय विजयस्त्र 'सत्तुपक्ख' शत्रुपक्षम् जितच पालय 'मित्तपवखं' मित्रपक्षं, मित्रं सर्वदा हितोपदेशकं हितचिन्तकं च तस्य, पक्ष: समूह:, तमपि पालय अजितशत्रुजयेन, जित मित्ररक्षणेन च राजशासनं सुदृढं भवतीतिभावः 'जाव भरहो इत्र मणुयाणं' थावद् भरत इव मनुजानां = मनुष्याणां मध्ये भरतभूप इव, यावच्छ्न्देन देवानां इन्द्र, असुराणां चमर इव, नागानां धरणेन्द्र इव ताराणां चन्द्र मदा कल्याण हो, आप ( अजियं जिणाहि ) अजित को सदा जीतने वाले रहें जिन देशादिकों को अभीतक आपने नहीं जीता हो उन्हें जीत कर अपने आधीन करें ( जियं पालयाहि ) तथा जिन्हें जीतकर आपने अपने वश में कर लिया हो उनकी आप सदा रक्षा करते रहें (जियम ज्झे साहि) आप सदा जीतने वालों के ही मध्य में बसे रहें कारण जीतने वालों के पक्ष में रहनेवाला व्यक्ति सदा सुरक्षित बना रहना है | ( अजियं जिणाहि ) आप अजितों को जीते-- उनपर विजय पावें( सत्तुपखं जिय च पाले हि ) शत्रु पक्ष की तथा जीत व्यक्ति की आप सदा रक्षा करते रहें । ( मित्तपक्खं ) इसी तरह आप अपने मित्र पक्ष की भी सदी संभाल करते रहें । अजीत शत्रु के जीतने से और अपने मित्र पक्ष की रक्षा करने से राजा का राजशासन सदा सुदृढ बना रहता है | ( जाव भरहो इव मणुयाणं रायगिहस्स नगरस्स अण्णे थाम. तभे (अजियं जिणाहि ) हमेशां व्यक्ति उपर भय भेजवनार थाओ. જે દેશાને તમે હજી સુધી જીત્યા નથી તેમને જીતીને પોતાને સ્વાધીન બનાવે. ( जिय पालयाहि ) अने ? देशाने तभे त्या छे, तेभनी हमेशां रक्षा रता रडे. (जियमज्झे साहि ) तमे सहा विन्न्यी पुरुषोनी वरये ४ वसो, भ विनयी भाणुसोना पक्षमां रहेनार व्यक्ति हमेशां सुरक्षित भनी रहे है. ( अजियं जिणाहि ) तभे अनिताने तो तेभना उपर विश्य भेजवा. ( सत्तुपक्खं जियं च पाले हि ) शत्रु पक्षनी तेभन विनित व्यक्तिनी तमे सहा रक्षा ४२ता रहे ( मित्त पंक्खं ) या शेते तभे पोताना भित्र पक्षनी पशु संभाग शमला रखेले. અજિત શત્રુને જીતવાથી તેમજ પોતાના મિત્ર પક્ષની રક્ષા કરવાથી રાજાનું રાજ્યशासन उभैशां सुस्थिर रहेछ, ( भरहो व मणुया णं रायगिहस्स