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ज्ञाताधर्म कथासूत्रे
पुष्पादि गृहन्ती 'गिण्हावेमाणी य' ग्राहयन्ती सखीद्वारा 'माणेमाणी य' मानयन्ती - लतादि रपठीना गुखमनुमदन्ती 'अग्घायमाणी ' जिघ्रन्ती च पुष्पादिकम् 'परिभुंजमाणी' परिभुञ्जाना फलादिकम् सखीभिःसह 'परिभायमाणी' परिमाजयन्ती फयदि कास्तूनां यथायोगं विभागं कुर्वाणा, वैभार गिरिपाद एवं दोहदं 'विणेमाणी' विनयन्ती = पूरयन्ती 'सव्वओ' सर्वतः सर्वमकारेण 'समता' समन्तात् सर्वदिक्षु 'आडिइ' आण्डिते = इतस्ततो गच्छति । ततः स ना धारिणी देवी अकालमेघदोहदे पूर्णे सतिविनीतदोहदा = पूरित dear todaurgaवोत, संपन्नदोहदा=अकालमेघदर्शनात्, सम्पूर्णदोहदा = अकालमेघवर्षणशोसावलोकनपूर्वकयथेच्छ क्रीडाकरणात् संम्मानितदोहदा - स्वमनो स्थानुकूलसकलवस्तुलाभात् जाताचाप्यभवत् । ततः ग्वलु सा धारिणी देवी सेचके निमित्त ग्रहण किया औरं सखियों द्वारा भी उन्हें ग्रहण कराया । नाड़िको के स्पर्श आदि से उसने सुखका अनुभव भी किया पुष्पों को यहां उसने संघानी राखियों के साथ सने फलादिकों की गाया भी । तथा उनका वहां उसने विभाग भी किया । इस तरह विविध क्रीडाओं द्वारा उसने नैभारगिरिके तलहट्टी में अपने दोहद की पूर्ति की। और सर्व प्रकार से वह वहां समरत दिशाओं में इधर से उधर घूमी । (तपणं मा धारिणीदेवी विणी दोहला संपन्न दोहला मंपुन्न दोहला संभाणिय दोहला जावा यात्रि होत्या) इस प्रकार वह धारिणी देवी अकाल मेघदह के पूर्ण होने पर अकाल मेघ के प्रादुर्भाव से पूरित दोहदा अकार सेव के दर्शन से संपन्न दोहहा अकाल मेघ के प्रादुर्भाव से पूरित दोहदा. अकाल भेव के दर्शन से संपन्न दोहदा, अकाल मेघ के वर्षण में शोना का निरीक्षण करती हुई यथेच्छ क्रीडा के करने से संपूर्ण दोहा और अपने मनोरथ के अनुकूल सकल वस्तुओं के लाभ से संमाननो बन गई। नए से धारिणी देवीं सेवणयगंधहथि મેળવ્યુ. તેમણે ત્યા પુપાની સુવાસ લીધી, અને સખીજના સાથે તેમણે ફળ વગેરે ની ત્યા તેણે વણી પણ કરી આ પ્રમાણે અનેક જાતની ફીયાઓ દ્વારા તેમણે વૈભાર પર્વતની તળેટીમાં પાતાના દાદની વૃતિ કરી. તે ત્યા રાત્ર રીતે આમતેમ श्री पाणी देणी विणीय दोहलासंपन्न दोहलासंपन्न दोडलासंमाणिय बनाया गानि होत्या) या श्राधानिशी हेवी गाण भेध દેહદ પૂર્ણ થયા પછી ડાળ મેઘના પ્રાદુર્ભાવિથી પૂતિ દાદા, એકાળે મેઘદર્શનથી પન્ન દાહના અકાળે મ॰ શ્રી, શાળાનું નિરીક્ષણ કરતી પાતાની ઈચ્છા મુજખ્ કીયાએ કરવાથી પૃ દાડુકા અને પાનાના મનાથને અનુકૃળ બધી વસ્તુઓ