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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका सू.११ स्वप्नविषयकप्रश्नोत्तरनिरूपणम् १५३ स्वप्नो दृष्टः, यावत् अरोग्यतुष्टि यात्रत् दृष्टः, इति कृत्वा इति स्वप्नार्थ विज्ञाय भूयो भूयो वारम्बारख् 'अणुव्हेंति' अनुवृहयन्ति स्नमार्थ शुभफल प्रदर्शनेन श्रेणिकराजं भृशं बर्द्रयन्ति-प्रसादधन्तीत्यर्थः। ततःखल्लु श्रेणिको राजा तेषां स्वप्नपाठकानामन्तिके एतमर्थ श्रुत्या निशम्य हृप्ट यावद्दृदयः कर सलं यावद् परमवादीत्-एवमेतत् हे देवानुप्रिया ! यावत् यत् खलु यूयं वदथ, इति कृत्वा तं स्वप्नं सम्यक् प्रतीच्छनि-यथार्थरूपेण स्वीकरोति प्रतीष्य, तान् (तं उरालेणं सामी धारिणीए देवीए सुभिणे दिढे जाव आरोग्य तुहि जाव दिढे इतिक हुभुजोर अणुव्हेंति) इसलिये हे स्वामिन् ! धारिणीदेवी ने जो यह स्वप्न देखा है वह बडा ही उदार देखा है। यह आरोग्य तुष्टि आदिका प्रदाता है। इस प्रकार स्वप्नार्थ को जानकर उनलोगोंने उस स्वप्न के फल प्रदर्शन से श्रेणिक राजाको वार २ था-उन्हें खूबू प्रसन्न किया। (तएणं लेणिए राया) इसके बाद उन श्रेणिक राजाने (सुसिणपाढगाणं) उन स्वप्न से अर्थ को यथार्थ रूप में प्रदर्शित करनेवाले स्वप्न पाठकों के (अंतिए) मुख से (एयभट्ट सोच्चा) इस रवप्नार्थ रूप वात को कानों से सुनकर तथा (णिसम्म) उसको चित्तमें जमा कर (हतुछ जाव हियए) हर्षोत्कर्ष से प्रफुल्लित हृदय हो (करयलजाब एवं वयाली) दोनों हाथों को जोडकर इस प्रकार कहा-यहाँ यावत् शब्द से पीछे का पाठ संग्रहीत हुआ-है। (एवमेयं देवाणुप्पिया जाव जन्नं तुम्भे वयहत्तिक? तं सुमिणं सम्म पडिच्छ३) हे देवानुनियों ! जैसा आपलोग कहते हैं वह बिलकुल ठीक है ऐसा कह कर राजाने उनके द्वारा प्रकाशित उस स्वप्नार्थ (तं उरालेणं सामी धारिणीए देवीए नुमिणे दिवे जाव आरोग्ग तुष्टि जाव दि इति कटु सुज्जोर अणुव्हेंति) मेटा भाटे के स्वामिन् ! धारिणी वीमे જોયેલું આ સ્વપ્ન બહુ જ ઉદાર છે. તે આરેગ્ય તુષ્ટિ વગેરેને આપનારું છે. આ પ્રમાણે સ્વપ્નના ફળને જાણીને તે લેકેએ તે સ્વમના ફળને બતાવતાં શ્રેણિક शकलने वारवार धामी माची, मने तमाने पर प्रसन्ना (तएणं सेणिए राया) त्या२०॥ तेश्रेणु २०व्ये (सुमिणपाढगेण) तेस्वभाना मथने साया३५मा मतावनारा ते स्वप्न 1 (अंतिए) ना मेथी (एयभट्ट सोचा) मा स्वप्नाथ ३५ पातने अनथी सलीनतेम (णिसम्म) तेने वित्तमा धाररीन (हतु जाव हिथए) पर उपथी प्रसन्न हुय थईन. (रयलजाब एवं बयासी) भन्ने हाथ डीन मा प्रमाणे मधु-मही 'यावत' शपथी पूर्व सा पानी सड थये। छ. (एकमेयं देवानुप्पिया जाव जन्नं तुझे क्यहत्तिक? तं मुमिण सम्मपरिच्छई) હે દેવાનુપ્રિયે ! જે તમે કહે છે તે તદ્દન સાચું છે, આમ કહીને રાજાએ સ્વપ્ન