SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका. सू. ६ धारिणीदेवीस्वप्नस्वरूपनिरूपणम् मलय =नवतक-कुशक्तलिम्ब - सिहकेशर प्रत्यवस्तृते अस्तरजस्कैः=अपगतरजःकणैः निर्मलैः मलय नवतक-कुशक्त लिम्बसिंह केशरैरास्तरणविशेषैः अवस्तृते क्रमेणाच्छादिते, तत्र मल देशोत्पन्न सूक्ष्मसूत्र निर्मित आस्तरणविशेषः, नवतक: =विशिष्टो निर्मितः, कुशक्तः = देश विशेषोत्पन्नः, लिम्ब= लघुवयस्कोर भ्रलूनोर्णा निर्मितः, सिहकेशरः = सिंहसटासदृशो जटिल : 'गलिचा' इति भाषायाम् एतेषामितरेतर- ' द्वन्द्वः । 'सुविरइयरयत्ताणे' सुविरचितरजखाणे - सु-सृष्टु सम्यगुरूपेण विरचितं= विस्तारितं रजस्त्राणं = रजोनिवारक उपरितनाच्छादन विशेषो यस्मिन् ते तथा तस्मिन् 'रतंय' रक्तांशुकसंवृते दंशमशकनिवारकरक्तवस्त्रावृते 'मच्छरदानी' इति भाषायाम्, 'सुरम्मे' सुरम्ये= मनोरमे । 'आइणगख्यवरणरणीयतृलफासे' आमलय से, नक्त से, कुशक्त से, लिम्ब से, एवं सिंह केशर से जो क्रमश ढकी हुइ है । मलयदेशोत्पन्न सूक्ष्मडोरों से निर्मित वन का नाम मलय हैं । विशिष्टप्रकार की ऊन से बने हुए वस्त्र का नाम नवतक है। देश विशेष में बने हुए वस्त्र का नाम कुशक्त है। सिंह सटाके सदृश जटिल वस्त्र का नाम सिंह केशर है । इसे हिन्दी में गलीचा कहते हैं । ये सब वस्त्र उसके ऊपर एक २ करके तरा ऊपर विछे हुए थे । (विररत्ताणे) वृली आकार सेज को मलिन न करदे इस ख्याल से उसके ऊपर एक और धूलिनिवारक वस्त्र बिछा हुआ था । ( रतंयए) सोने वाले को देश संशक वाधा न पहुँचा सके इसलिये उस शय्या पर लालरंग की एक मच्छरदानी भी तनी हुई थी । (सुरम्से) यह शय्या बडी सुन्दर होने के कारण मनको हरण करनेवाली थी । (आइणकेसर पच्चुत्थए अनुदुभे ने शय्या धूण वगरना મલય નવતક કુશકત લિમ્બ અને સિહ કેશરવર્ડ આવેષ્ટિત થયેલી છે. મલય દેશમાં ઉત્પન્ન થયેલા ઝીણા દારા વડે બનાવવામાં આવેલા વસનુ નામ ‘મલયજ’ છે. વિશેષ પ્રકારના ઊન વડે બનાવવામાં આવેલા વસ્ત્રનુ નામ નવતક’ છે. એક દેશ વિશેષમાં બનાવવામાં આવેલા વજ્રનુ નામ કુશકત છે. સિંહ સટાના જેવા જટાવાળા [જટિલ] વસ્ત્રનું નામ સિહ કેશર છે એને ફારસીમાં ‘ગલીચા' કહે છે આ બધા વસ્ત્રો તેના ઉપર એક ઉપર भेटु पाथरवामां आवेला हृतां (सुविरइयरयत्ताणे ) धूजथी सेन भलिन न था लय सेना भाटे ये जीन्नु रनिवार १२ ढांडवामां आवेलु तु. ( रत्तंसुय संबुर) સૂઈ જનારને ડાંસ–મચ્છર માષિત ન કરે એટલા માટે તે સેજ ઉપર લાલર ગની એક भग्छरहानी पशु ताशेसी हुती. (मुरम्से) महुन सरस होवाथी आ शय्या भनने उषनारी डती. (आइणगस्य बूरणवणीय तुल्लफासे) हरणु वगेरेना ग्राभडाथी ९१
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy