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. . भगवती त्पद्यन्ते एतत्पर्यन्तं पञ्चविंशतिशतकीयाप्टमोद्देशकमकरण मिहाध्येतव्यमिति । 'ते णं भंते ! जीवा किं आयनसेणं उज्जति आयनसेणं उबवज्जति' ते खलु भदन्त ! जीवाः किमात्मयशसा उत्स्यन्ते आत्दनः सम्बन्धि यशः यशःकारणत्वात् आत्मनः यशः-संयम आत्म यश स्तेन आत्मयशमा समुत्पद्यन्ते अथवा आत्मनोऽयशसा समुत्पद्यन्ते ? इति प्रश्ना, भगवानाह-गोयमा' इत्यादि' 'गोयमा' हे गौतम! 'नो आयजसेणं उपयजति आय अजसेणं उज्जंति' नो आत्मयशसा उत्पद्यन्ते किन्तु आत्माऽयशसोत्पान्ते इह च सर्वेषामात्माऽयशसेवोत्पत्ति भवति उत्पत्तौ सपा मविरत्वादिति । 'जड आय अनसेगं उश्वज्जति किं आयजसं उवजीवंति आय अजसं उवजीवंति' यदि आत्माऽयशमा उत्पद्यन्ते तदा किमात्म पायेन' हल पाठ से ले नहर 'आत्मप्रयोगेण उत्पद्यन्ते' इस पाठ तक पच्चीस वें शतक का अटमोद्देशक प्रकरण रहां ग्रहण कर लेना चाहिये। 'ते ण भते ! जीवा कि आयजलेग उपयति' हे भदन्त । ये जीव क्या अपने घश से उत्पन्न होते हैं ? अश्रवा 'आय अजसेण उवव. ज्जति' अथवा अपने असंयम से उत्पन्न होते हैं ? 'गोयमा | नो आयजसेण उवज्जति, आय अजलेण उवजनि' हे गौतम ! वे अपने संयम से उत्पन्न नहीं होते हैं, किन्तु अपने असंयम से उत्पन्न होते है। यहां समस्त जीवों की उत्पत्ति अपने असंयम से ही होती है । क्यों कि उत्पत्ति में यहां समस्त जीवों की अविरत अवस्था ही कारण है। 'जह आय अजमेण उवधाजलि' किं आयजस उवजीवंति' आय अजसं उपजीवति यदि वे आत्म असंयम से उत्पन्न होते हैं तो क्या वे आत्म संयम का आश्रय करते हैं ? अथवा आत्म असंयम का मामा हेशानी भएर ४२८ छ, तयाथी सव्यवसानयोगनिवर्तितेन करणोपायेन' मा पाथी बन 'आत्मप्रयोगेण उत्पद्यन्ते' मा ५18 सुधी ५-यास शतना भी देशानु थन गडियां यह शन न . 'ते ण भते ! जीवा आयजसेण उववज ति' मगन्ते । शु पाताना यशयी सयमयी उत्पन्न थाय छ ? गथवा 'आय अजसेण उववज्जति' मया पोताना मसयमयी उत्पन्न याय छ ? उत्तरमा प्रशुश्री ४ छ -'गोयमा! नो आयजसेण उववज्जति, आय अजसेण उववज्जति र गौतम ! तेसो पोताना सयमयी ઉત્પન્ન થતા નથી. પરંતુ પિતાના અસ યમથી જ ઉત્પન્ન થાય છે. કેમ કે 'जइ आय अजसेणं उवजीवंति कि आयजसं उवजीवंति आय अजसं उवजीवंति' ले ते मात्म सयमथ 64-न थाय छे, तो शु