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________________ घा ७०६ भगवती सूत्रे विरुद्ध संख्यान्तराधिकरणत्वादिति । एवम् 'जं समय कडजुम्मा तं समयं दावरजुम्मा' यस्मिन समये कृतयुग्माः तस्मिन् समये द्वापरयुग्माः संभवन्ति ? 'जं समय' दावरजुम्प तं समयं कडजुम्मा' यस्मिन् समये द्वापरयुग्माः तस्मिन् समये नयुग्माः संभवन्ति किमिति प्रश्नः, उत्तरमाह - 'नो इमडे समदे' नायमर्थः समर्थः । 'ज' समय' कडजुम्मा तं समयं कलियोगा' यस्मिन् समये कुनयुग्मा स्तस्मिन् समये कल्योजाः किम् ? तथा - 'जं समयं कलिओोगा' व समय कडजुम्मा' यस्मिन् समये कल्योजा रतस्मिन् समये कृतयुग्माः किमिति प्रश्नः, इस प्रश्न के उत्तर में प्रमुश्री कहते हैं-'जो इण्डे समट्टे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । क्योंकि जो एक संख्पाश्रित है उनमें विरुद्ध संख्यान्तर की अधिकरणता नहीं बनती है। इस प्रकार 'जं' समय कडजुम्मा तं समयं दावरजुम्मा' यह प्रन भी कि जिस समय वे कृतयुग्म रूप होते हैं उस समय में वे क्या द्वापरयुग्म रूप होते है ? 'जो इण्डे उमडे' इस सूत्र के अनुसार समर्थित नहीं हुआ है । और इसी प्रकार से- 'जं समयं दावन्जुरमा से समय कडजुम्मा' यह प्रश्न भी कि "जिस समय वे द्वापरयुग्म रूप होते हैं, उस समय में वे क्या कृतयुग्म रूप भी होते हैं ? 'जो हाडे मम' सूत्र के अनुसार समर्पित नहीं हुआ है । 'जं' समय कडजुम्मा तं राजय कलियोगा' तथा'जिस समय मैं कृतयुग्मपदवाच्य होते हैं उस समय में वे कल्योज पदवाच्य होते हैं तथा 'जं ममयं कलि होगा तं मयं उजुम्मा' जिस समय वे कल्पोज पदवाच्य होते है उस समय वे क्या कृतयुग्म पद स्वामीने हे छे है- 'जो इट्टे सट्टे' हे गौतम! आा अर्थ मरोमर नथी કેમકે-જેએ એક સંખ્યાના આશ્રયવાળા છે, તેએામાં વિરૂદ્ધ પ્રકારના सभ्यान्तरनु अधियागु जनतु नथी न प्रमाये 'ज' समय कडजुम्मा तं समयं दावरजुम्मा' ने सथये द्रुतयुग्म होय हे, ते समयभां तो शु द्वापरयुग्म ३५ होय छे ? या प्रश्न या 'जो इण्ठे समठे' मा सूत्रपाना प्रथम प्रमा समर्थित थयेस नथी. मने मे प्रभो 'ज' समय दावर जुम्मा तं समयं कडजुम्मा' या प्रश्न है-न्यारे तेथे द्वापरयुग्भवा હાય છે, તે સમયે તેઓ શુ મૃતયુગ્મ રૂપ પણ હૈાય છે ? આ પ્રશ્ન પણ ‘નોં इट्टे समट्टे' मा सूत्रपाठ प्रमाणे समर्पित थयेसा नधी. 'ज' समय कड जुम्मा त' समय' कलिओगा' तथा ने समये मृतयुग्म यहवाजा होय छे, ते वयते तेथे। उहयोग पहथी युक्त होय छे, 'ज' समय कलिओगा तं समर्थ' कडजुम्मा' क्यारे तेथे उयोपथी युक्त होय छे, ते वयते तेथे।
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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