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________________ ૬૦ भगवती सूत्रे उत्तरमाह अतिदेशद्वारेण - 'जहा' इत्यादि, 'जहा वेदियाणं तत्र असन्निसुवि बारससया कायन्त्रा' यथा द्वीन्द्रियाणां द्वादशशतानि कथितानि तथैवासंज्ञिBaf द्वादशशतानि कर्त्तव्यानि । प्रत्येकस्मिन् शते एकादश एकादशोदेशका, अपि वक्तव्याः । द्वीन्द्रियापेक्षया यद्वैलक्षण्यं तदाह - 'नवरं' इत्यादिना 'नवरं ओगाहणा जहन्नेणं अंगुळस्स असंखेज्जइभागं' नवरं केवलं वैलक्षण्यं द्वीन्द्रियशतापेक्षया इदमेव यत् शरीरावगाहना चतुरिन्द्रियाणां जघन्येनांगुलस्यासंख्येयभागममाणा 'उकोसेणं जोयणसहस्से' उत्कर्षेण योजनसहस्रम् | 'संचिडणा जहनेणं एक' समर्थ' 'संचिणा' कालतः कार्यस्थिति जघन्येन एकसमयममाणा हैं ? अथवा देवों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर - के सम्बन्ध में श्री गौतमस्वामी से कहते हैं- 'जहा वेह दियाण तहेव असन्निषु वि वारस सवा कायन्त्रा' हे गौतम ! जिस रीति से दीन्द्रिय जीवो के १२ शतक कहे गये हैं उसी रीति से असंनी जीवों के भी १२ शतक कहलेना चाहिये और प्रत्येक शतक में ११-११ उद्देशक भी कहना चाहिये । दीन्द्रिय की अपेक्षा जो यहां अन्तर है वह 'नवर' ओगाहणा जहन्ने' अंगुलस्ल असंखेजहभाग, उक्कोसेण जोयणसहस्स' इस सूत्रद्वारा किया गया है - यहां जधन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यात वें भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन की है । 'संचिणा जहन्नेणं' एकं समयं' काल की अपेक्षा कायस्थिति रूप संचि મનુષ્યેામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા દેવામાંથી આવીને ઉત્પત્ન થાય છે ? આ प्रश्नना उत्तरमां प्रलुश्री गौतमस्वाभीने छे - "जहा बेइ दिया तब असन्निसु वि बारससया कायच्या' हे गौतम! ? प्रभा मे ઇન્દ્રિયવાળા જીવાના સબંધમાં ૧૨ બાર શતકા કહેલ છે, એજ પ્રમાણે આ અસ'ની જીવેાના સખ`ધમાં પણ ૧૨ શતકા કહી લેવા અને દરેક શતકમાં ૧૧-૧૧ અગિયાર-અગિયાર ઉદ્દેશાએ પણ કહી લેવા. એ ઈન્દ્રિયવાળા જીવા करतां या उथनमां ने अतर छे, ते 'नवर' ओगाहणा जहणेण' अंगुलरस असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं जोयणसहस्स' मा सूत्रपाठ द्वारा प्रगट ४२वामां आवेस છે. અહિયાં જધન્ય અવગાહના આંગળના અસંખ્યાત ભાગ પ્રમાણ છે અને उत्कृष्ट शोउडलर योजननी उडेल छे. 'स'चिट्ठणा जहणेण एक्क' समयं ' उक्कोसेण' अजनी मपक्षाथी अयस्थिति ३५ सहि धन्य मे सभय
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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