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________________ ५१० भगवतीत्र तथा-'जे पं तस्स रासिस्स अवारसमया कलिओगा सेत्तं कलियोग तेओगे' ये खलु तरय राशेरपहारसमयाः कल्योजाः तस्मात्कारणात् स राशिविशेष: कल्योज ज्योज इति कथ्यते स च जघन्यतः सप्तात्मकः (७) इति १४। 'जेणं रासी च उक्कएणं अबहारेणं अबहीरमाणे दुपज्जवसिए' यः खल्ल राशि चतुपकेणापहारेणापहियमाणा द्विपयेवलितो भवति तथा 'जेणं तस्स रासिस्स अवहारसनया कलिओन सेतं कलिओगदावरजुम्मे ये खल तस्य राशेरपहार समयाः फल्योजा भवन्ति तस्मात् कारणात् स राशि विशेष: कल्योज द्वापरयुग्म इति कथ्यते, स च जघन्यतः षडात्मकः (६) इति १५। 'जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अबहीरमाणे एगपज्जवसिए' यः खल्लु राशिश्चतुष्केणापहारेणापहीयमाण एकपर्यवसितो भवेत् तथा-'जेणं तस्स रासिस्स अवहारसमया कलिओगा सेत्तं कलिओग कलिओगे' ये खलु तस्य राशेरपहारसमयाः कल्योजा भवन्ति माणे तिपज्जवलिए 'जे तस्स रासिस्स अवहारसमया कलिओगा ले त कलिओगतेओगे' जो राशि चार से विभक्त होकर अन्त में तीन पचाती है, तथा उन के आहार समय कल्पोज रूप होते हैं ऐसी वह राशि फल्योज धोज रूप कही गई । वह जघन्य संख्या में ७ रूप है। 'जे ण रोली चक्कएण अवहारेण अवहीरमाणे दुपज्जवसिए' 'जे ण तस्ल शालिक अवहारसमया कलि भोगा से तं कलिओग दावरजुम्ले' जो राशि चार ले विभक्त होती हुई अन्त में दो बचाती है और उस के अपहार लमय कल्पोज रूप होते है । ऐसी वह कल्योज द्वापदमुग्ध कही जाती हैं । संख्या में वह जघन्य से ६ रूप होती है । 'जे गं राली च उपकरण अवहारेण अवहीरमाणे एगपज्जवसिए जे ण तल राखिस्स अचहार ललया कलि श्रोगा से तं कलिओगकलि. ओगे' जो नाशि चार से अपहृत होकर अन्त में एक बचाती है । तथा તેઓ જે રાશી ચારથી વહેચાઈને છેવટમાં ત્રણ બચાવે છે, તથા તેના અપહારને સમય કલ્યાજ રૂપ હોય છે, એવી તે રાણી કજ ત્યાજ રૂપ કહેલ छ. ते सयामा ७ सात ३५ छ. 'जेण रासी चउकएण अवहारेण अवहीरमाणे दुरज्जवसिए जेण नस्स राखिस्स अवहारसमया कलि ओगा सेत्त कलि भोगदावर जम्मे' २ राशी यारथी पड यान छेक्ट में या छ, मन ना रे અપહારનો સમય કલ્યાજ રૂપ હોય છે, એવી તે રાશી કજ દ્વાપરયુગ્મ ३५ लामा भाव 2. सध्यामा १७ ३५ छे. 'जेण रासी चउक्कएण अवहारेण अवहीरभ णे एगपज्जवसिए जे ण तस्व रासिस्स अवहारसमया कलिओगा से त्त कलिओगकलिओगे' २ राशी यानी सच्याथी अपहत थर्थ न छट २४ यावे छे. तया 'जेण' तस्स रासिस्स अवहारममया कलि भोगा
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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