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________________ प्रमेयचन्द्रिका खेला श०३४ अ. श.१ सू.६ अ०सूक्ष्मपृथ्विकायिकोत्पत्तिः ६०९ माणे जे भनीए एगपयरंमि अणुसेढीए उववज्जित्तए' द्विधातो वक्रया श्रेण्या उत्पद्यमानो यो भव्य एकमतरे अनुश्रेण्या उपपत्तुम्, 'से णं तिसमइएणं विगहेणं उववज्जेज्जा' स खलु त्रिसामयिकेन विग्रहेण समुत्पद्येत, ‘से णं भंते ! भविए विसेढीए उववज्नित्तए से णं चउसमइएणं विग्न हेणं उपवज्जेज्जा' यः खलु भन्यो विश्रेण्यां समुत्पत्तु स खल चतुःसामयिकेन विग्रहेण समुत्पद्येत, न तु एकसामयिकेन ग्रिहेण गच्छति, दिगन्तात्-दिगन्ते गमनात् ‘से तेणटेणं गोयमा !' तत्ते. नार्थेन गौतम ! एवमुच्यते, द्विसामयिकेन वा, त्रिसामयिकेन वा, चतुःसामयिकेन वा विग्रहेण उत्पधेत इति, ‘एवं एएणं गमए' एवम् एतेन गमकेन, 'पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहओ' लोकस्य पौरस्त्ये चरमान्ते समवहतः, 'दाहिजिल्ले परिसंते उक्वायव्यो' दाक्षिणात्ये-दक्षिणे-चरमान्ते उपपातयितव्यः । तथा जो विधातो वक्रा श्रेणिशे गमन करता हुआ उत्पन्ति स्थान में उत्पन्न होता है ऐसा वह जीन वा यदि एक प्रलर में 'समश्रेणि में उत्पन्न होता है तब तो 'लिसमहएणं विग्गहेणं उववज्जेजा' वह वहां लीन समयवाले विग्रह से उत्पन्न होता है लेणं भंते भविए विसेढीए उपजित्तए ले णं चउससहएणं विग्गणं उववज्जेजा' और यदि यह चिणि वाले उत्पत्ति रथान में उत्पन्न होता है तो वह वहां चार समयवाले विग्रह से उत्पन्न होता है। एक समयदाले विग्रहसे नहीं। क्योंकि एक दिगन्त से दूसरे दिगन्त में उसका नमन होता है। से नणदेणं गोथमा। इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि वह वहां दो सवयवाले अथवा तीन लमयवाले विग्रह से उत्पन्न होता है। 'एवं एएणं गमेणं पुरस्थिभिल्ले चरिखते समोहओ दाहिणिल्ले चरिमते उपवाएयव्यों इस प्रकार इसी गम के अनुसार लोकके पूर्व के चरमान्त खवजित्तर' तथा द्विधाता श्रेणीथी गमन ४२ते। यत्पत्ति स्थानमा ઉતપન્ન થાય છે, એ તે જીવ ત્યાં જે એક પ્રતરમાં સમશ્રેણીમાં ઉત્પન્ન थाय तत त्या त्रय सभयवाणी (वयगतिथी 64न्न थाय छे. से ण भते। भविए विसेढीए उववज्जिचए से ण चउसमइएण विगहेण उववज्जेज्जा' भने તે વિશ્રેણીથી જ થકો ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે, તે તે ત્યાં ચાર સમયવાળી વિગ્રહગતિથી ઉત્પન થાય છે. એક સમયવાળી વિગ્રહગતિથી નહીં કેમ કે सहिगतमा तनुगमन थाय छे. 'से तेणटेण गोयमा ! ताणथाहै ગૌતમ! મેં એવું કહે છે કેત્યાં બે સમયવાળી અથવા ત્રણ સમયેવાળી वियगतिथी सत्पन्न थाय छे. 'एव एएणं गमेण पुरथिमिल्ले चरिमंते । सोहओ दाहिणिल्ले चरिमते उववाएयव्वो' मा गभ। प्रभा सा पूर्व यरभान्तमा स० ५२
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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