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भगवती
उत्तरयति - 'सेम' इत्यादिना, 'सेयं तद्देव जाव से तेणद्वेणं' शेष तथैव यथा अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीका विकोपपातावसरे उत्तरे कथितं तथैव इहापि याचनार्थेन गौतम । एवमुच्यते, इत्यादि प्रकरणान्तं सर्वमपि उत्तरादिकं ज्ञातव्यम् । यावत् पदेन सम्पूर्णस्यापि उत्तरवाक्यस्य संग्रहो भवति ।
'दक्षिण चरमान्ते उपपावं वर्णयितुमाह- अपज्जतसुम' इत्यादि । 'अपज्जत मढवीकारणं भये ।' अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकः खलु भदन्त ! 'इमीसे रयणध्वमाए पुढ़वीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते समोहर' एतस्याः रत्नपमायाः पृथिव्याः पाश्चात्ये- पश्चिमे चरमान्ते समवहतः 'समोहणित्ता जे भविए' समत्रका अप्त सूक्ष्म वनस्पतिद्याविकका, एवं अपर्याप्त बादरवनस्पतिकायिक का संग्रह हुआ है । इस प्रकार प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री गौतम स्वामी से कहते हैं - 'सेसे तहेच जाव से तेणद्वेणं' हे गौतम! जैसा अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकाधिक के उपपात के अवसर में उत्तररूप में कहा गया है उसी प्रकार से यहां पर भी 'घावत् हे गौतम! मैंने इस कारण से ऐसा कहा है' इस प्रकरण तक कह लेना चाहिये | यहां यावत् पद से सम्पूर्ण उत्तर वाक्य का संग्रह हुआ है ।
अब सूत्रकार पूर्व दक्षिण चरमान्त में उपपात को वर्णन करते हैं - इसमें गौतमस्वामीने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है- 'अपज्जत सुहुम पुढवीकाइरणं भंते ।' हे भदन्त ! कोई अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिक जीव 'इमी से पाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते समोहए' इस रत्न - प्रमापृथिवी के पश्चिम चरमान्त में मारणान्तिक समुद्घात से मरा 'समोहणित्ता जे भविए इसी से रणनभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते
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સૂક્ષ્મ પૃથ્વીક,યિકના ઉપપાતના સંબધમાં ઉત્તર રૂપથી કન કરેલ છે, તેજ રીતે આ પ્રકરણમાં પણ યાવત્ હે ગૌતમ! મેં આકારણથી એવુ' કહ્યું છે કેઆ પ્રકરણ પર્યન્ત સમજી લેવુ અહિયાં યાવતુ પદથી આ સમગ્ર ઉત્તર વાકય ગ્રહણ કરાયું છે.
હવે સૂત્રકાર દક્ષિણુચરમાન્તમાં ઉપપાતનું વર્ણન કરે છે. આમાં शौतभस्वाभीो अलुश्रीने मे पूछयु छे ! - ' अपज्जत्त सुहुम पुढ़वीकाइयाण' भंते !' हे भगवन् अपर्याप्त सूक्ष्म अर्थ पृथ्वी थिए व 'इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमते । समोहए' मा रत्नडला पृथ्वीना पश्रिम थरभान्तभां भारशान्तिः समुद्घातथी भरायामे भने 'समोहणित्ता जे भविष