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भगवतीस्त्रे तयितव्यः । उपपातपकारश्च पूर्ववदेव सर्वत्र स्वयमेवोहनीय इति ! ६०, 'एवं पज्ज. त्तवावर पुढवीकोइओ वि। ८० एम् अपर्याप्त वादरपृथिवीकायिकवदेव पर्याप्त वादरपृथिवीकायिकोऽपि विंशति स्थानेषु अपर्याप्त मूक्ष्म पृथिवीकायिकत
आरभ्य पर्याप्त बादरबनस्पतिकायिकायिकान्तेषु अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकवदेव उपपातयितव्य इति । ८०, 'एवं आउक्काइओ वि चउसु वि गमएसु पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहए' एवं पृथिवीकायिकवदेव अकायिकोऽपि चतुर्वपि गमकेषु, अपर्याप्त सूक्ष्म, पर्याप्त सूक्ष्मापर्याप्त वापर पर्याप्त वादर रूपेषु रत्नप्रभायाः पृथिव्याः पौरस्त्ये चरमान्ते समवहतः, 'एयाए चेव वत्तव्यया एएस चेव वीसइटा. णेसु उववाएयबो' एतयैव वक्तव्यतया एतेष्वेव विंशति स्थानेषु अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिकत आरभ्य पर्याप्त बादरवनस्पतिकायिकान्त रूपेषु उपपातयितव्या, समस्त जीवों में उत्पन्न कर लेना चाहिये । इस सम्बन्ध में उपपात सम्बन्धी आलापक प्रकार अपने आप उभावित कर लेना चाहिये ६०, 'एवं पज्जत्त घायर पुढवीकाइओ वि' ८० इसी प्रकार से अपर्याप्त पादर पृथिवी काधिक के जैसे ही पर्याप्त घादर पृथिवीज्ञायिक भी २० स्थानों में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकाधिक से लेकर पर्याप्न पादरवनस्पति काधिकतक के जीवों में उत्पन्न करा लेना चाहिये ८० । 'एवं आउक्काइओ वि व उस्लु वि गमएल पुरस्थिमिल्ले चरिमंते समोहए' इसी प्रकार अकायिक जीव भी अपर्याप्त सूक्ष्म पर्याप्त सूक्ष्म, अपर्याप्त पादर
और पर्याप्त बादर रूप चारों गमकों को आश्रित करके रत्नप्रभापृथिवी के पूर्व चरमान्त में समुद्घात पूर्वक 'एघाए चेव वत्तव्यथाए एएसु चेव वीसट्ठाणेसु उवधाएयायो' इसी वक्तव्यता द्वारा ऊपर में प्रदर्शित बीस स्थानों में उत्पन्न कराना चाहिये। तात्पर्य कहनेका यही हैं कि 6यात विषना मादायीन प्रा२ स्वयं मनवीन सम सेवा. 'एव पज्जत बायर पुढवीकाइओ वि' मा अपर्याप्त मा४२ यिना ४थन प्रभारी । પર્યાપ્તક બાદર પૃશ્વિકાયિક પણ ૨૦ વસે થનમાં અપર્યાપ્ત સમ પૃથ્વીકાયિકથી લઈને પર્યાપ્ત બોદર વનસ્પતિકાયિક સુધીના જીવમાં ઉત્પન્ન થયાના સંબંધમાં ४थन सभ ले. ८० 'एवौं आउकाइयो वि चउसु वि गभएमु पुरथिमिल्ले चरमते । स मोहए' 410 प्रभा माथि ७५ ५५ ५५र्यात सूक्ष्म. पति સૂકમ, અપર્યાપ્ત બાદર. અને પર્યાપ્ત બ દર રૂપ ચારે ગમેને આશ્રય કરીને २त्नाला पृथ्वीना पूर्व यरमा-तम समुद्धात पूर्व 'एयाए चेव वत्तव्वयाए एएसु चेव वीसइ ठाणेसु उववाएयव्वो' मा ४थन प्रमाणे ५२ पावसा वीस કથાનેમાં ઉત્પત્તિ કહેવી જોઈએ કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે પ્રકાયિકના