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भगवतीसूत्रे,
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तत्र - 'सचबंधमाणा आउवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ बंधेति' सप्तप्रकारक कर्म प्रकृती वैनन् आयुष्कर्माविरिक्ताः सप्त ज्ञानावरणीयादिकाः कर्मप्रकृतिध्नन्ति ! 'अ माणा पडिपुन्नाओ अह कम्मपगड़ीओ बंधेति' अष्टकर्मप्रकृती नन्तः परिपूर्णाः समस्ता अपि अष्टापि कर्मपकृती वैध्नन्ति । सर्वासामपि कर्म प्रकृतीनां बंधनं कुर्वन्तीति भावः । 'पज्जत्त मुहमपुढविकाइयाणं भंते !" पर्याप्तं सूक्ष्मपृथिवीकायिकजीवाः खलु भदन्न ! 'कति कर्मप्रकृती वैध्नन्तीति प्रश्नः, हे iter ! अपसून पृथिवीकायिक जीव सात कर्म प्रकृतियों का भी बन्ध करते हैं और आठ कर्मप्रकृतियों का भी बन्ध करते हैं 'सत्त वधमाणा आउवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ बंधंति' जब वे सात कर्म प्रकृतियों का बन्ध करते हैं तब आयुकस के सिवाय वे सात कर्म प्रकृतियों का ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, नाम, गोत्र, और अन्तराय इनका - घन्ध करते हैं 'अट्ठ बंधमाणा पडिपुन्नाओं अटु कम्मपगडीओ वंर्धति' और जब वे आठ कर्म प्रकृतियों का बन्ध करते हैं तो पूरी की पूरी आठों कर्मप्रकृतियों का बन्ध करते हैं।
- 'पज्जन्त्त सुहुम पुढचिक्कायाणं भंते! कहकम्म०' हे भदन्त ! पर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वध करते हैं ? 'गोमा ! एवं चेत्र' हे गौतम! अर्थात लक्ष्य पृथिवीकायिक भी सात प्रकार की कर्म प्रकृतियों के भी बन्धक होते हैं और आठ प्रकार की
ભ્રવૃવિ વંધનાનિ” હે ગૌતમ ! અપર્યાપ્ત સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિક છત્ર સાતકમ પ્રકૃતિચાના પશુ અધ કરે છે, અને આઠ કમ પ્રકૃતિયાના પણ બંધ કરે છે,
'सत्तबधमाणा आउबजाओ सत्तकम्मपगडीओ बंधंति' न्यारे तेयो સાત ક્રમ` પ્રકૃતિયાના અધ કરે છે, ત્યારે તેઓ માયુકમને છેડીને એટલે है - ज्ञानावरणीय, हर्शनावरथीय, वेहनीय, मोहनीय, नाम, गोत्र, भने भतराय मा सात प्रतियोना गंध रे छे. 'अटूब धमाणा पडिपुन्नाओ अट्ठ कम्म पगडीओ बघ'ति' भने क्यारे तेथे आठ अमृतियोोध मेरे छे, त्यारे પૂરેપૂરી આઠે કર્મ પ્રકૃતિયેાના બંધ કરે છે.
'पन्नत्त सुहुम पुढविक्काइयाणं भरते ! कइ कम्म० ' से लगवन् पर्याप्त સુક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિક છત્ર કેટલી ક્રમ પ્રકૃતિયેના ખ'ધ કરે છે? ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી छे- 'गोयमा । एवं चेत्र' हे गौतम! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी थिए अनी જેમ જ પર્યાપ્ત સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિક પણુ સાત પ્રકારની કમ' પ્રકૃતિયાને બંધ કરે છે, અને આઠે ક્રમ પ્રકૃતિયાના પશુ બંધ કરે છે, જ્યારે તે સાત