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• प्रयचन्द्रिका टीका श०३३ उ. १ सू०१ एकेन्द्रियजीवनिरूपणम्
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'गोमा' हे गौतम ! 'अट्ठ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ' अष्टकर्मप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः'कथिताः । प्रकारभेदमेव दर्शयति- 'तंज'हा' इत्यादि । 'त जहा ' तद्यथा - 'नाणावैरणिजं जाव - अंतराइयं' ज्ञानावरणीयं यावद् आन्तरायिकम् । अत्र यावत्पदेन 'दर्शनावरणीय वेदनीय - मोहनीयायु- नाम - गोत्राणां सग्रहो भवति । तथा चज्ञानावरणीयादारभ्यान्तरायिकपर्यन्ता अष्टौ कर्मप्रकृतयोऽपर्याप्तसूक्ष्मपृथिवीकायिकानां भवन्तीत्युत्तरमिति । 'पज्जसमुहुम पुढवीकाइया णं भंते! कइ कम्मपंग'डीओ पन्नताओ' पर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकानां खलु भदन्त ! कति संख्यकाः कर्म प्रकृतयः प्रज्ञप्ताः कथिता इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोमा' हे गौतम! 'अट्ठ कम्मपगडीओ' अष्ट कर्म प्रकृतयः प्रज्ञप्ताः एतेषामष्टौ "कर्मप्रकृतयो भवन्तीत्युत्तरम् । प्रकारभेदमेव दर्शयति- 'तं जहा ' इत्यादि । 'तं जहाँ ' तद्यथा - 'नाणावर णिज्जं जाव अंतराइयं' ज्ञानावरणीयं यावत्पदेन दर्शनावरणीय कर्मप्रकृतियां कही गई है ? 'गोधमा । अट्ठ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ' हे गौतम! उनके आठ कर्मप्रकृतियां कही गई हैं। 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं 'नाणावर णिज्जं जाव अंतराइयं' ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायिक यहां यावत्पद से दर्शनावरणीय वेदनीय मोहनीय आयु नाम और गोत्र इन कर्मप्रकृतियों का ग्रहण हुआ है । 'पज्जन्त सुहुमपुढवीकाइया भते ! कह कम्मपगडीओ पन्नन्ताओ' हे भदन्त ! पर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक जीवो के कितनी कर्मप्रकृतियें कही गई हैं ? उत्तर में भगवान कहते हैं 'गोला ! हे गौतम ! ' अड्ड कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ' आठ कर्मप्रकृतियां कही गई हैं । 'तं जहा ' वे इस प्रकार हैं'नाणावर णिज्जं जाव अंतराइयं' ज्ञानावरणीयसे लेकर अन्तराय कर्म की आठों कर्मप्रकृतियां कही गई है। जैसे - ज्ञानावरणीय, मावेस छे ? उत्तरमां अनुश्री - ' अटु कम्मपगडीओ पन्नताओ' डे गौतम ! तेथेने अहम् अमृतियो डी छे 'त' जहा' ते या अभा
'नाणावरणिज्ज जाव अंतराइय' ज्ञानावरणीय यावत् अतराय मंडियां यावत्पढ्थी इर्शनावरणीय, भोडनीय, वेहनीय, नाम, गोत्र, अने आयु કર્મ પ્રકૃતિયા ગ્રહણ કરવામાં આવી છે,
पण्णत्ताओ'
'पञ्ज्रत्तसुहुमपुढत्रीकाइया णं अंते ! कइ कम्मपगडीओ ભગવત્ પર્યાપ્ત સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયક જીવને કેટલી કમ પ્રકૃતીચે કહેવામાં मावेत ? उत्तरमा प्रश्र - 'गोयमा ! डे गौतम ! 'अठ्ठ कम्म पगडीओ पण्णत्ताओ' या प्रतीय वामां आवे छे. ते या प्रभा छे.- 'नाणावर णिज्ज जाव अतराइय' 'ज्ञानावरीयांथी सर्ध ने अन्तराम्भ सुधीनां