SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१६ भगवतीस्त्रे _ 'काउलेस भवसिद्धिया चउसु जुम्मेसु' कापोत लेश्या भवसिद्धिका नारका: चतुर्ध्वपि कृतयुग्म-योज-द्वापरयुग्मेषु । 'तहेव उववारयन्या जहेब ओहिए काउलेस्सोद्देसए' तथैव तेनैव रूपेण उपपातयितव्याः यथैव-औधिके कापोतलेश्यो देशके उपपातिताः । एतच्छतकीय चतुर्थोदेशके कापोतलेश्याश्रित नारकाणां युग्म चतुष्टयमधिकृत्य यथा-यथा उत्पादपरिमाणादिकः कथितः तत्सर्व मिहापि अनुसन्धेय इति । 'सेव भते ! सेन भते ! ति जाव विहरइ' तदेव भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति यावद्विहरति । इत्यष्टम उद्देशकः समाप्तः ॥८॥ इति श्री-विश्वविख्यातजगवल्लभादिपदभूपितबालब्रह्मचारि - 'जैनाचार्य' पूज्यश्री-घासीलालबतिविरचितायां "श्री भगवतीसूत्रस्य" प्रमेयचन्द्रिकाख्यायां व्याख्यायां एकत्रिंशत्तमे शतके अष्टमोद्देशकः समाप्तः ॥३१-८॥ आठवें उद्देशेका प्रारंभ 'कउलेस्स भवसिद्धिया चउसु जुम्मेलु' कापोतलेश्यावाले भव. सिद्धिक नैरयिकों का चारों युग्मों में 'तहेव उवधाएयव्या जहेव ओहिए काउलेस्लो इसए' औधिक कापोतलेश्या उद्देशक में कहे गये अनुसार उपपात आदि का कथन करना चाहिये । तात्पर्य कहने का यह है कि इस शतक के चतुर्थ उद्देशक में कापोतलेश्या को आश्रित करके नारकों का कृतयुग्मादि चारों युग्मों में जिस-जिस प्रकार से उत्पाद परिमाण आदि का कथन किया गया है वही सब कथन यहां पर भी लगाना चाहिये सेवं भंते । 'सेव भंते ! त्ति जाव विहरई' આઠમા ઉદ્દેશાને પ્રારંભ– 'काउलेस्स भवसिद्धिया चउसु जुम्मेसु' पात वेश्यावा लपसिद्धि यिनु यारे युग्मामा 'तहेव उववाएयव्वा जहेव ओहिए काउलेस्सोदेसए' भोधि पात वेश्यावाणा देशमा । प्रभारी ५पात विगेरे સંબંધી કથન કહેવું જોઈએ કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે–આ એકત્રીસમા શતકના ચેથા ઉદ્દેશામાં કાતિલેશ્યાને આશ્રય કરીને નારકેનું કૃતયુમ વિગેરે ચારે યુગ્મમાં જે-જે રીતે ઉત્પાદ, પરિમાણ વિગેરેના સંબંધમાં કથન કરવામાં આવ્યું છે, એજ સઘળું કથન અહિંયાં પણ કહેવું જોઈએ. 'सेव भते । सेव भते । ति जाव विहरई' है भगवन् मापवानुप्रिये इस
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy