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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३१ उ.२ सू०१ भव. कृत. ने. उपपातादिकम् २०९: केवलं सर्वत्र परिमाणं भिन्न भिन्न रूपेण ज्ञातव्यम् । 'परिमाण पुष्व मणियं जहा पढमुद्देसए' परिमाणं पूर्व भणितमेव ज्ञातव्यम् यथा एतच्छतकीय प्रथमोद्देशके कथितम् चत्वारो वा, अष्टौ वा, इत्यादि कृतयुग्मस्य । प्रयो वा, सप्त वा, इत्यादि योजस्य । द्वौ वा, षड् वा इत्यादि द्वापरयुग्मस्य । एको वा, पञ्च वा इत्यादि कल्योजस्येति । 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति हे भदन्त ! भवसिद्धिक क्षुल्लक कृतयुग्मादि नारकाणां सामान्यानां रत्नप्रभा याश्रितानां च उत्पादपरिमाणादिकं यथा देवानुपियेण कथितं तत्सर्व सर्वथैव माणं जाणियन्वं' परन्तु सर्वत्र परिमाण भिन्न-भिन्न रूप से जानना चाहिये, जैसा कि इस शतक के प्रथम उद्देशक में कहा गया है-कि कृतयुग्म राशिप्रमित नैरथिकों का परिमाण एक समय के उत्पाद का चार आठ आदि रूप हैं, योज राशिमित नैरपिकों का परिमाण एक समय के उत्पाद का तीन अथवा सात आदि रूप है। द्वापर युग्मराशि प्रमित नैरयिकों का परिमाण दो, छह आदि कल्योज राशिप्रमित नैरयिकों का परिमाण एक पांच आदि रूप है। 'सेव भंते ! सेव भंते ! त्ति' हे भदन्त । क्षुल्लक कृतयुग्मादि राशिप्रमित भवसिद्धिक नैरथिको के उत्पादादि के सम्बन्ध में जो सामान्य रूप से तथा रत्न प्रभादि आश्रित इन्हीं नैरयिकों के उत्पादादि के सम्बन्ध में जो विशेष પણાથી સમજવું. જેમ કે-આ શતકના પહેલા ઉદ્દેશામાં કહ્યું છે કે-કૂતયુગ્ય રાશિપ્રમાણ રિયિકેનું પરિણામ (એક સમયના ઉત્પાદનું) ચાર, આઠ, વિગેરે રૂપ છે. એજ રાશિપ્રમાણુવાળા નૈરયિકનું પરિમાણ એક સમયના ઉત્પાદનું. ત્રણ અથવા સાત વિગેરે રૂપે છે. દ્વાપર યુગ્મ રાશિ પ્રમાણ નરથિનું परिभा-2-2418 विगैरे ३थे छे. तम सम 'सेव भते । सेव' भते ! त्ति' 8 लगवन् क्षुत तयुभ शशिप्रभार વાળા ભવસિદ્ધિક નૈરયિકના ઉત્પાત વિગેરેના સંબંધમાં સામાન્ય રૂપથી અને વિશેષ રૂપથી આપવાનુપ્રિયે જે કથન કર્યું છે. તે સઘળું કથન સર્વથા भ० २७
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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