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________________ SELEC-2 भगवतीसूत्र जीवस्यातिदेशः कृतोऽतः सामान्यजीववदेव पञ्चेन्द्रियतिरश्चामपि व्यवस्था ज्ञातव्येति । 'नवरं नायव्वं जं अस्थि' नवर ज्ञातव्यं यदस्ति पञ्चेन्द्रियतिर्यग्यो. निकानां यत्यत् पदजातं विद्यते तत्र तत्रैव भवसिद्धिकत्वादिकमवगन्तव्यमिति । 'मणुस्सा जहा ओहिया जीवा' मनुष्या यथा औधिका जीपाः सामान्यजीवप्रकरणवदेव मनुष्यप्रकरणमपि ज्ञातव्यमिति 'वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा असुरकुमारा' वानव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिका असुरकुमारवदेव ज्ञातव्याः। 'सेवं भंते ! सेवं भंते । त्ति' तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति, हे भदन्त समवसरणचतुष्टयविपये यद्देवानुप्रियेण कथितं तत् एवमेव सर्वथा सत्यमेवेति जीव का अतिदेश किया गया है-इसलिये सामान्य जीव के जैसी ही व्यवस्था पञ्चन्द्रिय लियञ्चों की जाननी चाहिये 'नवरं नायव्यं जं अत्थि' परन्तु पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों के जो-जो पद हों वहीं-वही पद अवसिद्धिक आदिका कथन करना चाहिये, 'मणुस्सा जहा ओहिया जीवा' लामान्य जीव के प्रकरण के जैसा ही मनुष्य का प्रकरण जानना चाहिये। 'वाणमंतरजोइलियवेमाणिया जहा असुरकुमारा' वानव्यन्तर ज्यो. तिषिक और वैमानिकों को असुरकुमारों के जैसा जालना चाहिये 'सेच भंते ! सेवं भते । त्ति' हे भदन्त ! समवसरण चतुष्टय के विषय में जो आप देवानुप्रियने कहा है यह सर्वथा सत्य ही है इस प्रकार ५'यन्द्रिय तिय यानु ४थन समय'. 'नवर नायव्वं जं अत्थि' ५२'तु પંચેન્દ્રિય તિર્યોમાં જે પદ કહ્યા હોય તેજ પદ ભવસિદ્ધિક વિગેરેના ४थनमा समj. 'मणुस्सा जहा ओहिया जीवा' सामान्य अपना प्र४२मा हा प्रमाणे ४ मनुष्यना समयमा समापु. 'वाणमंतरजोइसिय वेमाणिया जहा असुरकुमारा' वानव्यन्त न्योति भने मानिटीना समधन थन અસુરકુમારના પ્રકરણ પ્રમાણે સમજવું. 'सेव भंते ! सेव भंते ! त्ति' हे भगवन् न्यारे प्रा२ना समक्स२पना સંબંધમાં આપ દેવાનુપ્રિયે જે કથન કર્યું છે. તે સર્વથા સત્ય છે. હે ભગવાન આપા દેવાનુપ્રિયનું કથન સર્વથા સત્ય જ છે. આ પ્રમાણે કહીને ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુશ્રીને વંદન કરી નમસ્કાર કર્યા વંદના નમસ્કાર કરીને તે પછી તેઓ
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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