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भगवती सूत्रे
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- पर्यन्याः सर्वेऽपि क्रियावाद्य क्रियावादिभृतिसमवसरणेषु भवसिद्धिकत्वादि रूपेण प्राणीया इति । जीवनारक देवदण्डकान् विविश्य एकेन्द्रियादि दण्डकानू . विवेचयन्नाह - 'पुढवीकाइया राज्यास वि मन्झिल्लेसु दोसु वि समोसरणेसु 'भवसिद्धिया वि अभवसिद्धिया वि' पृथिवीकायिका जीवाः सर्वस्थानेषु मध्यमयो -रक्रियावाधज्ञानिकनादिरूपयोः समवसरणयो र्भवसिद्धिका अपि भवन्ति अर्थ- सिद्धिका अपि भवन्तीति । ' एवं जाव वणस्सइकाइया' एवं पृथिवी कायिकच देव यावत वनस्पतिकायिका अपि माध्यमिकसमवसरणद्वये भवसिद्धिका अपि अभं 'afafe aft aafa, अत्र यावत्पदेना कायिकतेजस्कायिकत्रायुकायिकानां संग्रदो भवतीति । 'वेदिय से इंदियच उरिंदिया एवंचेव' द्वीन्द्रियत्रीन्द्रियअसुरकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक सब ही क्रियावादी, अक्रियावादी आदि अवस्थाओं में अवसिद्धिक आदि रूप से समझना चाहिये ।
इस प्रकार जीव नारक और देव दण्डकों की विवेचना करके अब सूत्रकार एकेन्द्रिय आदिक दण्डकों की विवेचना करते हैं- 'पुढवीकाइया
gya मल्लेसु दोसु वि समोसरणेसु भवसिद्धिया वि अभवसिडिया बि 'पृथिवीकायिक जीव समस्त स्थानों में अक्रियावादी और अज्ञानवादी रूप दो समवसरणों में भवसिद्धिक भी होते हैं और अभवसिद्धिक भी होते हैं । 'एवं जाच वणस्सइकाइया' पृथिवी कायिक के जैसे ही यावत् वनस्पतिकायिक भी माध्यमिक दो समवसरणों में भगसिद्धिक भी होते हैं और अभवसिद्धिक भी होते हैं।
यावत् पद से 'अकायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक' इनका संग्रह हुआ है । 'वेदिय, तेदिय चरिंदिया एवं चेव' द्वीन्द्रिय, वि जाव यणियकुमारा' ना२४ ना કથા પ્રમાણે જ અસુરકુમારાથી લઈને સ્નનિતકુમાર સુત્રીના સઘળા ક્રિયાવ દી, અક્રિયાવ'દી વિગેરે અવસ્થાઓમાં ભવસિદ્ધિક વિગેરે પણાથી સમજવા,
આ પ્રમાણે જી, નારક, અને દેવ દડકેતુ' વિવેચન કરીને હવે सूत्रभर मेड द्रिय विगेरे इंडोनु विवेशन रे छे– 'पुढवीकाइया सव्त्रट्ठाणे व मझिल्लेसु दो वि समोसरणेसु भवसिद्धिया वि अभवसिद्धिया वि' પૃથ્વીકાયક જીવે સઘળા સ્થાનમાં અક્રિયાવી અને અજ્ઞાનવાદી રૂપ એ સમવસરણૈામાં ભવસિદ્ધિક પણ હૈય છે, અને અમલસિદ્ધિક પણ હાય છે. અહિયાં ચાવપદથી અખ઼ાયિક, તેજસ્કાયિક અને વાયુકાયિક એ પદોના સ‘ગ્રહ थयो छे 'बेइंदिय, तेइदिय चउरिंदिया एवं चैव' में 'द्रियवाजा, भणु 'द्रियવાળા અને ચાર ઇંદ્રિયવાળા જીવો પણ પૃથ્વીકાયિક વિગેરના કથન પ્રમાણે
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