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________________ भगवतीसूत्रे १२८ यथा सलेश्याः यावत्पदेन क्रोधमानमायाकपायिनां संग्रहः तथाचते सर्वेऽपि 'सलेश्यवदेव क्रियावादिनो भवसिद्धिका नो असवसिद्धिका अक्रियादि समवसरणाअयत्रन्तरतु भवसिद्धिका अपि अभवसिद्धिका अपि भवन्तीति । 'अफसाई जहा 'सम्मशिट्टी' अपायिनो यथा सम्यग्दृष्टयः 'सस्यदृष्टिवदेव भवसिद्धिका नो । अभवसिद्धिका भवन्तीति भावः। 'सजोगी जाव कायजोगी जहा सलेस्सा' ‘सयोगिनो यावत् काययोगिनश्च यथा सळेश्याः, यावत्पदेन मनोयोगिनो । वचोयोगिनश्च संग्रहः तथा च सयोगित आरभ्य काययोगिपर्यन्ताः सर्वेऽपि ., सलेश्यवदेव क्रियावादिनो भवसिद्धिका नो अभवसिद्धिका अक्रियायादि प्रमृत्य स्त्रयेऽपि भवसिद्धिका अपि अभवसिद्धिका अपि भवन्तीति भारः। 'अजोगी जहा सम्मट्टिी' अयोगिनो यथा सम्यग्दृष्टयः सम्यग्दृष्टि बद अयोगिनो भवसिद्धिका यावत् शब्द से क्रोध, मान, माया कषायवालों का ग्रहण हुभा है। तथा-अक्रियावादी, अज्ञानिकवादी एवं वैनधिकवादी अवस्था में ये सब भवसिद्धिक ही होते हैं, अभयसिद्धिक नहीं होते हैं । 'अकसाई जहा सम्म दिट्ठी' अशषायवाले जीव सम्यग्दृष्टि जीवों के जैसे भवसिद्धिक ही होते हैं अभवसिद्धिक नहीं होते हैं। 'मजोगी जाव कायजोगी जहा सलेला सयोगी यावत् कोययोगी सवेश्य जीवों के जैले क्रियावादी अवस्था में अवसिद्धिक ही होते हैं अभवसिद्धिक नहीं होते हैं। यहां गावल्पद से 'मनोयोगी और बचोयोगी' इनका ग्रहण हुआ है। लथा ये लयोगी से लेकर यावत् काययोगी तक के समस्त जीव अक्रियावादी अवस्था में अज्ञानिकवादी अवस्था में भव. मिद्धिक भी होते हैं और अभवसिद्धिक भी होते हैं। 'अजोगी जहा અભવસિદ્ધિક હોતા નથી. અહિયાં યાસ્પદથી કોધ, માન, માયા, એ કષાય વાળાઓ ગ્રહણ કરાયા છે. તથા કિય વદી, અજ્ઞાત્વદી, અને નચિકવાદી અવસ્થામાં આ બધા ભવસિદ્ધિક જ હોય છે. અભવસિદ્ધિક હેતા નથી 'अकसाई जहा सम्मदिदि' २१४पायव सभ्यपि वाना ४थन प्रमाणे माद्वि०४ डाय छे. मम साता नयी 'मजोगी कायजोगी जहा सलेस्सा' सयोगी याययोगमा सवेश्य छ ना ४थन પ્રમાણે કિયાવાદી અવસ્થામા ભવસિદ્ધિક જ હોય છે અભાવસિદ્ધિક હતા નથી અહિયાં યાવ૫દથી મને ગવાળા, અને વચન ગવાળા ગ્રહણ કરાયા છે. તથા આ સગીથી લઈને કાગવાળા સુધીના સઘળા છે અઝિયાવાદી અવસ્થામાં અજ્ઞાનવાદી અવસ્થામાં અને વૈયિકવાદી અવસ્થામાં ભવસિદ્ધિક પણ હોય છે, અને અભવસિદ્ધિક પણ હાથ છે,
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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