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प्रमैयमन्द्रिका टीका श०२६ उ.१ सू०३ ज्ञानावरणीयकर्माश्रित्य वन्धस्वरूपम् ५६५
' टीका--'जीवे णं भंते !' जीवः खलु भदन्त ! 'नाणावरणिज्जं कम्म' ज्ञानावरणीयं कर्म 'कि बंधी बंधइ बंधिस्सइ' ० किम् अवघ्नात् वध्नाति भन्स्यति १, अवध्नात् वध्नातिन भन्स्यति २, अवधनात न बध्नाति भन्स्यति ३, अथवा अतीतकाले ज्ञानाबरणीयं कर्म अवघ्नात् वर्तमानकाले ज्ञानावरणीयं कम वध्नाति, अनागतकाले ज्ञानावरणीयं कर्म ल भन्स्यति ४ इत्येवं क्रमेण
इस प्रकार समस्त २५ दण्डक सामान्य पापकर्म को आश्रित फरके कहे गये हैं, लो इसी प्रकार से वे ज्ञानाकरण आदि कर्मों को आश्रित करके कहते हैं । 'जीवेणं संते ! नाणावरणिज्ज झम्म किंबंधी बंधई' इत्यादि ।
टीकार्थ--हे अदन्त ! जीवने क्या ज्ञानावरण कर्म का पहिले बन्ध लिया है ? वर्तमानकाल में क्या वह उसका धन्ध करता है ? आगे भी क्या वह उलका वध करेगा १ ? अथया-'अवधनात्'-भूनकाल में उसमें उसका बन्ध किया है ? 'पनाति-वर्तमानकाल में क्या वह उसका बंध करना है ? 'न भन्स्पति' भविष्यत् में वह उसका पन्ध नहीं करेगा २ ? अथवा-'अवधनात् भूतकाल में क्या उन्मने उसका बन्ध किया है ? 'न बध्नाति' वर्तमान में वह उसका बन्ध नहीं करता है ? 'भन्स्थति'-आगे वह उसका बन्धन करेगा ३ ? अथवा-'अवघ्नात्-भूतकाल में वह उसका बन्ध कर चुका है ? 'ल बनाति' वर्तमान काल में
આ રીતે સામાન્ય પાપકર્મને આશ્રય કરીને પચ્ચીસ દડકે કહે. વામાં આવ્યા છે. તે જ રીતે જ્ઞાનાવરણ વિગેરે કર્મને આશ્રય કરીને
उस छ. यो पात वे प्रगट ४२वामां आवे छे.-'जीवे णं भंते ! नाणावरणिज कम्म कि बधी, वधइ' त्यादि
ટીકાથ–હે ભગવન જીવે પહેલા જ્ઞાનાવરણ કર્મને બંધ કર્યો છે? વર્તમાનમાં શું છે તેને બંધ કરે છે? અને ભવિષ્યમાં તે તેને બંધ કરશે ? गया 'अवघ्नात्' सूतभा तो तेन ध य छ ? 'बधी' वतमान
wi na! मध ४२ छ १ 'न भन्स्यति' भविष्य . त तन म नही ४२ १ २ मथ41 'अबध्नात्' भूतामा तो तेन म य छ? 'न बध्नाति' वर्तमान म त त म नथी ४२तो ? 'भन्स्यति' भविष्यमा aayu ४२0१ 3 अथवा 'अबध्नात्' भूतम त ना ५ ४३॥
श्य। छ १ 'न बध्नाति' वतमान mi a तना धनथा रता ? सवि. વ્યમાં તે તેને બંધ નહીં કરે? આ રીતે જ્ઞાનાવરણીય કર્મના બંધના વિષયમાં ચાર અંગે રૂપ પ્રશ્ન ગૌતમસ્વામીએ પૂછેલ છે.