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________________ १०८ भगवतीसूत्र सद्भावापेक्षया तु तृतीयचतुर्थारकायोरेत्र चारित्रप्रतिपत्तिभवतीति समुदितार्थः । 'जई उस्सप्पिणीकाले होज्ना' यदि स पुलाक उत्सर्पिणीकाले भवेत् तदा-कि 'दूसमसमाकाळे होज्जा १' किं दुःपमदुःपनाकाले उत्सर्पिण्याः प्रथमारके खलु समुत्पद्यते अथवा 'दुममाकाले होज्जा' दुपमाकाले भवेत् अथवा 'दुसमसुसमाकाले होना' दुःपासुपमाकाळे उत्सर्पिण्या स्तृतीयारके भवेत् अथवा 'सुसमदूसमाकाले होज्जा' सुपमदापनाकाले भवेत् अथवा 'सुसमाकाले होज्जा' सुषमाकाले भवेत्अथवा 'मुसमसुप्तमाकाले होज्जा' सुपमसुपमाकाले पष्ठारके भवेदिति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जम्मणं पडुच्च' जन्म प्रतीत्यप्रकार तनीय और चतुर्थ इन दो आरकों में जन्म और सद्भाव ये दोनों भी होते हैं एवं सद्भाव की अपेक्षा तृतीय और चतुर्थ आरकों में ही चारित्र की प्रतिपत्ति होती है। 'जह उस्सप्पिणीकाले होज्जा' यदि वह पुलाक उत्सर्पिणी काल में होता है तो क्या वह 'दुस्तमदुस्लमालाले होजा' दुःपानदुःपमाकाल नामक प्रथम आरक में होता है ? अथवा 'दुस्लमाकाले होज्जा' दुःपमाकाल में-द्वितीयकाल में-होता. है ? 'दुस्समलुलमाका होज्जा' अथवा दुःषमसुषमाकाल में होता है ? तृतीय काल में होता है ? अथवा 'सुसमदुस्लमाकाले होज्जा' चतुर्थ सुषमापनाकाल में होता है ? अथवा 'सुसमा काले शोज्जा' पांचवें सुषमाकाल में होता है, अथवा 'सुसमसमाकाले होज्जा' उत्सर्पिणी के सुषमसुषमानाम के छठे आरया में होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री गौतमस्वामी से कहते हैं-'गोयना ! जस्मणं पडुच्च' हे गौतम! ચોથા આ બે આરાઓમાં જન્મ અને સદ્ભાવ એ બને પણ હોય છે. અને સદ્ભાવની અપેક્ષાથી ત્રીજા અને ચોથા આરાઓમાં જ ચારિત્રની ઉત્પત્તિ डाय छे. 'जइ उस्सप्पिणीकाले होज्जा' ने ते पुक्षा सqिी मां डाय छ, तशुत 'दुस्समदुम्समाकाले होज्जा' हम दुषमा मां-पडसा णमा Bाय छ ? अथवा 'दुस्समाकाले होजा' हु:५मा ४i-lat mi डाय छ १ 'दुस्समसुसमाकाले होज्जा' अथवा :पम सुषमा मत हाय छ-त्री भी डाय छ १ अथवा 'सुसमदुस्समाकाले होज्जा' याथा सुषम पभा डाय छ १ अथवा 'सुसमाकाले होज्जा' पांयमा सुषमा आमा डायथे। अथवा 'सुसमसुसमाकाले होज्जा' Gral gीना सुषम सुषमा नामना ૬ છઠ્ઠા આરામાં હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામી ને કહે -गोयमा! जम्मण पडुच्च' है गौतम! मनी मपेक्षाथी पुसा साधु
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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