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________________ ९०६ 1. -भगवती सूत्रे गौतम ! 'नत्थि अंतरं' नास्ति अन्तरम् - व्यवधानं निष्कम्पानां नैवान्तर भवतीवि । ' एवं जाव अनंत परसियाणं खंधाणं' एवं यावत् अनन्तमदेशिकानां स्कन्धानां सैनानां निरेजानां च व्यवधानाभावो ज्ञातव्यः, बहुत्वादिति ॥ १२ ॥ 1 सेज निरेजानामरूप वहुवे कथयितुमाह-एएसि णं' इत्यादि । मूल्य- एएसि णं भंते! परमाणुपोग्गलाणं सेयांणं निरेयाण य कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा' ! सव्वत्थोवा परमाणुपोग्गला सेया, निरेया असंखेज्जगुणा एवं जाव असंखिज्जपए सियाणं खंधाणं । एएसि णं भंते! अनंतपरसियाणं खंधाणं सेयाणं निरेयाणं य कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सवत्थोवा अनंतपएसिया खंधा निरेया, सेया अनंतगुणा । एएसि णं भंते! परमाणुयोग्गलागं संखेजपएसियाणं, असंखेज्जपएसियाणं अणतपएसियाण यं खंधाणं . सेयाणं निरेयाण य दव्वट्टयाए परसट्टयाएं दव्वटुपएट्टयाए कयरे -1 f करेहिंतो जाव विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा अनंतएसिया खंधा निरेया दव्वट्टयाएर, अनंतपएसिया खंधा सेया दव्वट्टयाए अनंतगुणार परमाणुपोग्गला सेया दव्वट्टयाए अणंतगुणा३, संखेज्जप एसिया खंधा सेया दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणाएं, असंखेज्जप एसिया खंधा सेया व्याए अंसंखेज्जगुणा५, परमाणुपोग्गला निरेया दव्बट्टयाए असंखेज्जगुणा ६, इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोयमा ! नत्थि अंतरं' हे गौतम! इनका अन्तर नहीं होता है । 'एवं जाव अणतपंएसियाणं खाणं' सैज एवं निरेज यावत् अनन्तप्रदेशिक स्कन्धों तक का इसी प्रकार से अन्तर नहीं होता है क्योंकि ये सब बहुत होते हैं ॥सू० १२॥ } " ' छे - 'गोयमा ! नत्थि अंतर" हे गौतम! तेनु तर होतु नथी. ' एवं ' जाव अणतपए सियाण' खधाणं' सेन भने निरेन यावत् अनंतप्रदेशेोषागा સ્કંધે સુધીના કધેનુ અંતર આ કથન પ્રમાણે કેતુ નથી કેમકે એ બધા महु डे|य छे. ॥सू० १२॥ 1
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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