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________________ अमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.४ २०१२ पुद्गलानां सम्प-निष्कपत्वनि० ८९५ राया च हे भदन्त ! परमाणुः सकम्पोऽकम्पो वेति प्रश्नः । भगवानाह-गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'सिय सेए सिय निरेए' स्यात् कदाचित् पर: माणुः सैन:-चलनादिक्रियावान् स्यात् कदाचित निरेजः-चलनादिक्रियारहितः। 'एवं जाव अणंतपएसिए' एवं यावदनन्तमदेशिका परमाणुपुद्गलवदेव द्विपदेशिक स्कन्धादारभ्य अनन्तमदेशिका स्कन्धः स्यात सैज:-चलनत्वधर्मवान् स्यात निरेज:-चलनवधर्मरहित इति । 'परमाणुयोग्गला णं मंते ! कि सेया निरेया परमाणुपुद्गलाः खल भदन्त ! कि सैजाः निरेजा वेति प्रश्नः। भगवानाहगोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम | 'सेया वि निरेया वि' सैना:-चलना; दिमन्तोऽपि भवन्ति परमाणुपुद्गलाः, निरेजाश्चलनादि धर्मरहिता अपि भवन्तीति। एवं जाव अणंतपएसिपा' एवं यावन् अनन्तपदेशिकाः स्कन्धा अपि सैजा अपि अकम्प-चलन क्रिया से रहित होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम! 'सिय सेए सिघ निरेए' परमाणु पुद्गल कदा. चित् सकम्प होता है, कदाचित् अकम्प होता है। 'एवं जाव अणंतपएसिए' परमाणु पुद्गल के जैसा द्विप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध कदाचित् सकम्प होता है और कदाचित् अकम्प होता है। ____ 'परमाणुपोग्गलाणं भंते ! कि सेया निरेया' हे भदन्त ! समस्त परमाणुपुद्गल क्या सकंप होते हैं अथवा अकम्प होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'सेया वि निरेया वि' परमाण पुद्गल सज-चलनादि धर्म सहित भी होते हैं, और निरेज चलनादि धर्मरहित भी होते हैं। 'एवं जाव अणंतपएसिया' इसी प्रकार से यावत् अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध भी सेज होते हैं और निरेज भी होते हैं। 'पर અક ચલન કિયા વિનાનું હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમઃ * साभार ४ छ -'गोयमा !' 8 गौतम 'खिय सए सिय निरेए' परमार પદ્ગલ કેઈવાર સકમ્પ હોય છે અને કેઈવાર કમ્પ વિનાનું એટલે કે એક हाय छे. 'एव जाव अणवपएसिए' ५२मा सना ४थन प्रभाग में प्रदेशવાળા સ્ક ધથી લઈને અનંતપ્રદેશવાળા સ્કંધ સુધીના સ્ક ધ કાઈવાર સકમ્પ હોય છે અને કેાઈવાર અકમ્પ-કમ્પ વિનાના પણ હોય છે. 'परमाणुपोग्गलाणं भते । कि सेया निरेया' ७ भगवन् सणा परमार પગલે શું સકંપ હોય છે ? અથવા અકલ્પ હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभुश्री । छ8-'गोयमा ! 8 गौतम! 'सेया वि निरेया वि' ५२मा पुरस સેજ-ચલન વિગેરે ધર્મસહિત પણ હોય છે અને નિરજ-ચલન વિગેરે ધર્મ विनाना डाय छे. 'एव जाव अणंतपएसिया' मा प्रमाणे यावत् मनतપ્રદેશેવાળા કંધે પણ સેજ-ચલનકિયા વિગેરે ધર્મવાળા હોય છે, અને निर-यसन विशेष धम पिनाना पडाय छे. , ‘परमाणुपोग्गले णं. भंते !
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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