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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.४ सू०९ पुद्गलानां कृतयुग्मादित्वम् ८६७ ज्योजाः न वा द्वापरयुग्माः न वा कल्योजा इति । 'णवषएसिया जहा परमाणु पोग्गला' नवप्रदेशिकाः स्कन्धा यथा परमाणुपुद्गलाः, परमाणुपुद्गलवत् ओघा. देशेन स्यात् कृतयुग्मा यावत् स्यात् कल्योजाः विधानादेशेन नो कृतयुग्मा नो योजा नो द्वापरयुग्माः कल्योजा इति ।, 'दसपएसिया जहा दुप्पएसिया' दशप्रदेशिका यथा द्विपदेशिकाः द्विपदेशिकवत् दशपदेशिकपुद्गला अपि ओघादेशेन स्यात् कृतयुग्माः नो गोनाः स्यात् द्वापरयुग्माः नो कल्पोजाः, विधानादेशेन तु नो कृतयुग्माः नो योजाः किन्तु द्वापरयुग्माः न वा कल्पोजा इति । 'संखेजपएसियाणं पुच्छा' संख्येयप्रदेशिकाः पृच्छा, हे भदन्त ! संख्येयप्रदेशिकाः द्वापरयुग्म अथवा कल्योज रूप नहीं होते हैं । 'णवपएसिया जहा परमाणुपोग्गला' नौ प्रदेशोंवाले समस्त स्कन्ध सामान्य से परमाणु पुद्गलों के जैसे कदाचित् कृतयुग्मरूप भी होते हैं यावत् कदाचित् कल्पोजरूप भी होते हैं । तथा विधान से-एक एकरूप से वे केवल कल्योजरूप ही होते हैं, कृतयुग्मरूप अथवा योजरूप अथवा द्वापरयुग्नरूप नहीं होते हैं । 'दस पएसिया जहा दुप्पएसिया' दशप्रदेशिक जो स्कन्ध हैं वे सामान्य से द्विपदेशिक स्कन्धों के जैसे कदाचित् कृतयुग्मरूप भी होते हैं और कदाचित् द्वापरयुग्मरूप भी होते हैं, योजरूप अथवा कल्पोजरूप नहीं होते है तथा-विधान से-एक 'एक दशप्रदेशिक स्कन्ध स्वतन्त्रका से हापरयुग्मरूप होते हैं, कृतयुग्मरूप नहीं होते हैं, योजरूप नहीं होते हैं और न कल्पोजरूप ही होते है। । 'संखेज्जपएसिया णं पुच्छा' इस सूत्र द्वारा श्रीगौतमस्वामी ने युग्म अथ४८य१०४:३५ हात नथी. -णिवपएसिया जहा परमाणुपोग्गला' નવ પ્રદેશાવાળા સઘળ સ્કંધે સામાન્યપણાથી પરમાણુ પુદ્ગલેના કથન પ્રમાણે કેઈવાર કૃતયુગ્મ રૂપ પાસ હોય છે. યાવત્ કદાચિત કાજ રૂપ પણ હોય છે. તથા વિધાનાદેશથી એટલે કે એક એપણાથી તેઓ કેવળ કલ્યાજ રૂપ જ હોય છે. કુતયુગ્મ રૂપ અથવા એજ રૂપ અથવા દ્વાપર युभ३५ डरता नथी. 'दसपएसिया जहा दुप्पएसिया' ६५ प्रशापामा २ કંધે છે, તે સામાન્યપણાથી બે પ્રદેશવાળા કંધના કથન પ્રમાણે કઈવાર કૃતયુગ્મ રૂપ પગ હોય છે. અને કોઈવાર દ્વાપરયુગ્મ રૂપ પણ હોય છે. જ રૂપ અથવા કાજ રૂપ હોતા નથી તથા વિધાનાદેશથી એક-એક રૂપથી દશપ્રદેશવાળે કંધ સ્વતંત્ર રીતે દ્વાપરયુગ્મ રૂપ હોય છે. તે કૃતયુમ રૂપ કહેતા નથી તથા વ્યાજ રૂપ પણ હોતા નથી અને કલ્યાજ રૂપ પણ હોતા નથી " 'संखेज्जपएसियाणं पुच्छा' 'मा' सूत्रद्वारा श्रीगीतमनाभीय प्रभुश्रीन मे
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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