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________________ ४५४ भंगवतीपत्रे नाह-'गोयमा' इत्यादि, ‘गोयमा' हे गौतम ! 'ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलिओगा' ओघादेशेन-सामान्यातिदेशेन स्यात् कृतयुग्माः परमाण' वः यावत् स्यात् कल्योजाः, यावत्पदेन स्यात् योजाः, स्याद् द्वापर युग्माः। परमाणुपुद्गलाः खलु ओघादेशतः कृतयुग्मादयो भजनया भवन्धि परमाणूना मन , न्तत्वेऽपि संघातभेदेनानवस्थितरूपत्वादिति । 'विहाणादेसे णं नो कडजुम्मा नो, तेओगा नो दावरजुम्मा कलि भोगा' विधानादेशेन-विशेषादेशेन, नो कृत. युग्माः नो व्योजाः नो द्वापरयुग्माः किन्तु कल्योजमात्रा एव भवन्तीति । एवं जाव अणंतपएसिया खंधा' एवं यादनन्तप्रदेशिकाः स्कन्धाः ओघादेशेन अन. न्तमदेशिकाः स्कन्धाः स्यात् कृतयुग्माः यावत कल्योजाः विधानादेशवस्तु एकैकशः कल्योजा एक न तु कृतयुग्मादिरूपा इति । में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलिओगा' हे गौतम ! सामान्य के आदेश से समस्त परमाणु पुद्गल कदाचित् कृतयुग्मरूप होते हैं ! कदाचित् योजरूप होते हैं, कदाचित् द्वापरयुग्मरूप होते है और कदाचित् कल्पोजरूप होते हैं। परमाणु यद्यपि अनन्त हैं अतः इनमें सिर्फ कृतयुग्मतारूप ही होनी चाहिये, परन्तु फिर भी इनमें जो अनन्तता है, वह भेद सघात द्वारा अनवस्थित है। इस कारण इनमें चतृरूपता प्रकट की गई है । 'विहाणादेसेणं नो कडजम्मा, नो ते मोगा, नो दावरजुम्मा, कलि ओगा' परन्तु विधानादेश से-विशेष की अपेक्षा से-वे न कृतयुग्मरूप हैं, न योजरूप है, न द्वापरयुग्मरूप हैं किन्तु कल्यो जरूप है 'एवं जाव अर्णतपसिया खंधा' इसी प्रकार से जो यावत् अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध हैं वे सामान्य की अपेक्षा से चतराशिरूप हैं और विशेष की अपेक्षा से केवल कल्पोजरूप ही है-कृतयुग्मरूप, योजरूप और द्वापरयुग्मरूप नहीं हैं। उत्तरमा प्रमुश्री ४ छ-'गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलिओगा' 8 गौतम ! सामान्यपहाथी संघ परमार पुगस वार કાયમ રૂપ હોય છે, કેઇવાર કાજ રૂપ હોય છે, કોઈવાર દ્વાપરયુગ્મ રૂપ હોય છે. અને કેઈવાર કલ્યાજ રૂપ હોય છે. જો કે પરમાણુ અનંત છે. જેથી તેઓમાં કેવળ કૃતયુગ્મપણું જ હોવું જોઈએ પરંતુ તેમાં જે અનંતપણુ છે, તે ભેદ સ ઘાત દ્વારા આવેલ છે. તે કારણે ચારે પ્રકારપણું प्रगट ४२ छ 'विहाणादेणं नो कहजुम्मा नो तेओगा नो दावरजुम्मा कलि. ઘોઘા પર તુ વિધાનદેશથી-વિશેષપણાથી તેઓ કૃતયુગ્મ રૂપ નથી જ ३५ नथी द्वापरयुम ३५ ५५ नथी ५२तु ४क्ष्या४ ३५ छ 'एव जाव भणतपएसिया खधा' मे प्रमाणे यावत् मन तशवाणा २४ थे। छ, त
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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