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________________ भगवती सूत्रे. (૪૮ द्रव्यार्थतया पूर्वीपेक्षया संख्येयगुगा अधिका भवन्ति । तथा-'असंखेज्जगुण कक्खडा पोग्गला दव्बट्टयाए असंखे जगुणा' असंख्यातगुणकर्कशा : पुद्गलाःद्रव्यार्थतया पूर्वीपेक्षया असंख्यातगुणा अधिका भवन्तीति । 'अतगुणकक्खडा पोग्गला दव्वट्टयाए अनंतगुगा' अन्तगुगकर्कशाः पुद्गला द्रव्यार्थतया पूर्वापेक्षया अनन्तगुणा अधिका भवन्ति । 'परसट्टयाए एवं चेव' प्रदेशार्थतया - प्रदेशरूपेणाऽपि - एवमेव यथा - द्रव्यार्थ उयाऽल्पबहुत्वं प्रदेशातयाऽपि तथैवावग न्तव्यम् 'नवरं संखेज्जगुणा' - नत्ररम् - केवलमेतदेव वैलक्षण्यं यत्-संख्येयगुणाः पूर्वापेक्षा अधिका भवन्तीति । 'सेसं तं चेव' शेषं तदेव यदेव - द्रव्यार्थता कथितम् दर सट्टयाए' द्रव्यार्थम देशार्थतया उभयरूपपक्षे इत्यर्थः । 'सबदबट्टयाए संखेज्जगुणा' इनसे संख्यातगुणें अधिक द्रव्यरूप से संख्यातः गुणकर्कशपरीवाले पुद्गल हैं। 'असंखेज्जगुणकक्खडा पोग्गला दव्त्रया असंखेज्जगुणा' इनसे असंख्यातगुणें अधिक द्रव्यरूप से असंख्यातगुणे कर्कश स्पर्शवाले पुद्गल है। 'अनंत गुणकक्खडा पोगाला दव्वट्टयाए अनंतगुणा' तथा अनन्तगुणकर्क' शस्पर्शवाले पुगल असंख्यातगुणे करू शस्पर्शयाले पुगलों की अपेक्षा द्रव्यरूप से अनन्तगुणें हैं । 'परसट्टयाए एवं चेव' जिस प्रकार से इनका अल्पबहुत्व यहां द्रव्यरूप से कहा गया हैं, प्रदेशरूप से भी इसी प्रकार से इनका अल्पबहुत्व जानना चाहिये | 'नवरं संखज्जगुगऋखडा पोग्गला पएसए संखेजगुणा' परन्तु विशेषता ऐसी है कि संख्यातगुण कर्कशस्पर्शवाले पुद्गल पूर्व की अपेक्षा प्रदेश (र्थरूप से संख्तगुणित हैं । 'सेतं तं चेत्र' इसके अतिरिक्त ओर सब कथन पूर्वोक्त द्रव्यरूप से कहे गये जैसा पोगला दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा' तेनाथी संख्यातगया वधारे द्रव्ययाथी सौंध्यातगुथु ४४श स्पर्शवाणा युद्दगये। छे. 'अस खेज्जगुण कक्खडा पोगाला दयार असखेज्जगुणा' तेनाथी असण्यातगया वधारे द्रव्यपथाथी असभ्यातगया अद्रुश स्पर्शवाणा युगो छे. 'अनंतगुणकक्खड़ा पोगाला दव्यटुयाए अनंतगुणा' तथा अनंत गुणु श स्पर्शवाणा युद्दगडी असण्यातગણા કર્કશ સ્પર્શવાળા પુદ્ગલા કરતાં દ્રવ્યપણુ થી અનંતગણુા છે. વવ सट्टयाए एवं चेत्र' ? प्रभाते भतु हमहुपाशु द्रव्यपगाथी ह्युछे, मे प्रभा प्रदेशयथाथी पशु तेभनुं मध्य मडुप समन्न्वु 'नवर' संखेजगुणकक्खड़ा पोग्गला पएसइयाए सखेज्जगुणा' परंतु या स्थनमां विशेषयाशु એ છે કે–સખ્યાત ગુણવાળા પુદ્ગલા પહેલાની અપેક્ષાએ પ્રદેશપણાથી સ ध्यातंगा छे. 'सेसं त चेत्र' मा उथन सिवाय माडीतु तमाम इथन 'चलेला
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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