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प्रमेयमन्द्रिका टीका श०२५ उ.३ सू०५ लोकस्य परिमाणनिरूपणम् ६८३
अथाऽलोकाकाशश्रेणिविपये माह-'अलोगागाससेढीभो' इत्यादि० 'अलो. गागाससेढीओ णं भंते' अलोकाकाशश्रेणयः खलु भदन्त ! 'दबट्टयाए कि संखे ज्जाओ असंखेजाओ अणंताओ' द्रव्यार्थतया-द्रव्यरूपेण किं संख्याताः, असं. ख्याताः, अनन्तावेति प्रश्न. ? भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'नो संखेज्नाओ नो असंखेन्जाओ अर्णताओ' नो संख्याताः अलोका काशश्रेणयो न वा असंख्याताः किन्तु-अनन्ता एव भवन्ति । अनन्तप्रदेशात्मकवादलोकाकाशस्येति । एवं पाईगपडीणाययो वि' एवं प्राची प्रतीच्यायता अपि अलोकाकाश श्रेणयः पूर्वपश्चिमदिशि लम्बायमानाः श्रेणयोऽपि न संख्याता नासंख्याताः किन्तु-अनन्ता एव भवन्ति अनन्तपदेशात्मकत्वादलोकाकाशस्येति । 'एवं दाहिणोत्तराययाओवि' एवं दक्षिणोत्तरायता अपि दक्षिणोत्तरस्यां लम्बायमाना अपि श्रेगयो न संख्याताः न वा-असंख्याताः किन्तु अनन्ता भवन्तीति ।
अथ श्री गौतमस्वामी अलोकाकाश की प्रदेश पङ्क्तियों को आश्रित करके प्रभु श्री से पूछते हैं-'अलोगागाससेढीओणं भते! दवट्याए कि संखेज्जाओ, असंखेज्जाओ अणंताओ' हे भदन्त ! अलोकाकाश की श्रेणियां द्रव्यरूप से संख्यात हैं अथवा असंख्यात हैं ? अथवा अनन्त है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-'गोयमा! नो संखेज्जाओ नो असंखेज्जाओ अणंताओ' हे गौतम! अलोकाकाश की अणियां द्रव्य रूप से न संख्यात हैं, न असंख्यात है किन्तु अनन्त है। क्योंकि अलोकाकाश अनन्त प्रदेशात्मक कहा गया है। 'एवं पाईण पडीणाययाओ वि' इसी तरह से पूर्व से पश्चिम तक लम्बी अलोकाकाश की श्रेणियां भी न संख्यात हैं न असंख्यात हैं किन्तु अनन्त है। 'एवं दाहिणोत्त. राययाओ वि' इसी प्रकार से दक्षिण दिशा से उत्तर दिशा में लम्बाय. मान श्रेणियां भी अनन्त ही हैं । वे न संख्यात हैं और न असख्यात
- હવે શ્રી ગૌતમસ્વામી અલકાકાશની પ્રદેશ પક્તિઓને આશ્રય કરીને प्रभुश्री मे पूछे, है-'अलोगागाससेढीओ ण भंते ! दबयाए कि सखे. ज्जाओ असखेज्जाओ अणंताओ' 3 भगवन् शनी श्रेणीया द्रव्य. પણાથી શું સંખ્યાત છે? અથવા અસંખ્યાત છે ? કે અનંત છે? આ प्रश्न उत्तरमा प्रभु श्री गौतम स्वामीन ४३ -'गोयमा! नो संखेज्जाओ नो असं खेज्जाओ अणताओ' हे गीतम! Ratशनी श्रेणीया द्रव्ययाथी સંખ્યાત નથી. અસંખ્યાત પણ નથી પરતુ અનંત છે. કેમકે-અલકાકાશ અનંત प्रदेशवाणुछ ‘एवं दाहिणोत्तराययाओवि' से शते क्षिशिथी उत्तर દિશા સુધી લાંબી શ્રેણી પણ અનંત જ છે. તે સંખ્યાત કે અસંખ્યાત નથી.