________________
प्रेमयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१२ सू०२ अप्कायिक पृथ्वीकायादीनामुत्पत्तिः ५५ कोऽपि जीवः अग्निकायिकेभ्य आगत्य पृथिवीकायिके उत्पद्यते तदा तेजस्कायिकानां जीवानामपि एषैव-अकायिकपकरणपठिीव वक्तव्यता बोद्धव्या, अकायिकवत तेजस्काधिकानामपि व्यवस्थाऽत्रगन्तव्या। असायिकापेक्षया यद्वैलक्षण्य तदाह-'नवर' इत्यादि, 'नवरंगसु वि गमएसु तिनि लेस्साओ' नवरम् केवलं पूर्व लेश्याचतुष्टयमुक्तम् अप्कायिकेषु देवोत्पत्तेरपि सद्भावात् देवानां च तेजो. लेश्याया अपि सद्भावादेवेभ्य आगतानां चस्रो लेश्याः, इह तेजस्कायिकमकरणे तु तिल एव-कृष्ण-नील-कापोतिकाख्या एव लेश्याः तेजस्कायिकेषु देवो. त्पत्तेरनभ्युपगमादिति । ते उक्काइया णं ईकलावसंठिया' तेजस्कायिकाः खलु सूचीकलापसंस्थिता, 'ठिई जाणियन्या' स्थितितिव्या तेजस्कायिकानाम् स्थितिरिह तेजस्काविकस्थिति ज्ञेश, तथाहि-तेजनायिकानां जघन्या स्थितियहां तेजस्कायिकों के सम्बन्ध की भी कहनी चाहिये, परन्तु अप्का यिक की अपेक्षा जो इस वक्तव्यता में भिन्नता है वह इस प्रकार से है-'नवरं वसु वि गमएस तिनि लेस्लामो वहां नौ ही गमों में लेश्याएं तीन ही होती हैं पूर्व में लेश्या चतुष्टय कहा है क्योंकि अपू. कायिकों में देवों की उत्पत्ति भी होती है, और देवों को तेजोलेश्या का भी सद्भाव रहता है, इसलिये वहां देवोंसे आये हुए के चार लेश्याएं कही गई हैं। पर यहां तेजस्कायिक के प्रकरण में जो तीन लेश्याएं कही गई हैं-सो' उसका प्रकरण ऐला है कि तेजस्कायिकों में देवों की उत्पत्ति नहीं होती है । 'तेउकाइयाणं सुइकलावसंठिया' तेज. स्कायिकों का संस्थान सुईयों के समूह के जैसा होता है, 'ठिई जाणियव्वा तेजस्कायिक जीवों की स्थिति जघन्य ले एक अन्तर्मुहूर्त की होती है और उत्कृष्ट से तीन अहोरात की होती है, પણ કહેવું જોઈએ. પરંતુ અપ્રકાયિકના કથન કરતાં આ કથનમાં જે જુદાपार थे, ते माशते,-'नवर गवसु वि गमएसु तिन्नि लेस्साओ' गडियां નવે ગમેમાં ત્રણ લેશ્યાઓ હેય છે. પહેલાના કથનમાં બધે ઠેકાણે ચાર લેશ્યા હોવાનું કહ્યું છે. કેમકે-અપૂકાચિકેમા દેવોની ઉત્પત્તિ પણ થાય છે. અને દેવેને તેજલેશ્યાનો પણ સદ્ભાવ રહે છે, તેથી ત્યાં ચાર લેશ્યા હેવાનું કહ્યું છે. પણ અહિયાં આ તેજસ્કાયિકના પ્રકરમાં જે ત્રણ લેયાઓ કહેવામાં આવી છે તેનું કારણ એ છે કે-તેજસ્કાવિકોમાં દેવની ઉત્પત્તિ थती नथी. 'तेउकाइयाण सुईकलावसठिया' तेविहानु संस्थान से . याना समूह (ला) र डाय छे. 'ठिई जाणियव्वा' तायि ना સ્થિતિ જન્યથી એક અતિમુંહતની હોય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ અહેરા