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प्रमेयचन्द्रिका टीका २०२५ उ.३ १०३ प्रदेशतोऽवगाहतश्च संस्थाननि० ६३९ आ. नं.१२ तोवसेया 'उक्कोसेणं अणंतपएसिए तं चेव उत्कर्षेणाऽनन्तपदेशिक तदेव ० ० असंख्यातप्रदेशावगाढ चेत्यर्थः। 'तत्थ णं जे से घणचउरंसे' तत्र खल
____यत् तत् धनचतुरस्रं संस्थानम् 'से दुविहे पन्नत्ते' तत् घनचतुरस्रं द्विविध ० ° मज्ञप्तम् 'त जहा ओयपएसिए य जुम्मपएसिए य' तद्यथा ओजपदेशिकं. आ. नं.१२ च युग्मप्रदेशिकं च । 'तत्थ णं जे से ओयपएसिए' तत्र खलु यत् तद् ओजप्रदेशिकम् ‘से जहन्नेणं सत्तावीसइपएसिए सत्तावीसइ पएसोगाढे' तत् जघन्येन सप्तविंशतिप्रदेशिकं सप्तविंशतिप्रदेशावगाढव एवमेतस्य नवमदेशिकपतरस्योपरि जे से जुम्मपएसिए' तथा इनमें जो युग्मप्रदेशिक चतुरस्त्र संस्थान है 'से जहन्नेणं चउपएसिए चउपएसोगाढे पन्नत्ते' वह जघन्य से चार प्रदेशों घाला होता है और आकाश के चार प्रदेशों में इसका अवगाह होता है। इसका आकार सं. टोकामें आ० नं. १२ से दिया है 'उस्को. सेणं अणंतपएसिए तं चेव' तथा उत्कृष्ट से यह अनन्त प्रदेशों वाला होता है और आकाश के असंख्यात प्रदेशों में इसका अवगाह रहता है। 'तत्थ णं जे से घणचउरंसे' तथा उनमें जो घनचतुरस्र संस्थान होता है-'से दुविहे पमत्ते' वह दो प्रकार का कहा गया है। 'ओयपएसिए. जुम्मपएसिए य' जैसे-ओज प्रदेशिक और युग्म प्रदेशिक 'तत्थ णं जे से ओयपएसिए' इनमें जो ओज प्रदेशिक चतुरस्र संस्थान है वह 'से जहन्नेणं सत्तावीसइपएसिए' जघन्य से सत्ताईस प्रदेशो वाला होता है और 'सत्तावीसह पएसोगाढे' सत्ताईस आकाश प्रदेशों में उसका अवगाहन होता है। इस नव प्रदेशिक प्रतर के ऊपर अन्य दो दूसरे नवप्रदेशिक छ. 'से जहन्नेण च उपएसिए चउपएसोगाढे पन्नत्ते' ते धन्यथा या२ प्रदेशी વાળ હોય છે, અને ચાર પ્રદેશોમાં તેને અવગાઢ હોય છે તેને આકાર स मा मा. न. १२ थी मतावे छे. 'उकोसेणं अणतपएसिए त चेव'. તથા ઉત્કૃષ્ટથી તે અનંત પ્રદેશોવાળું હોય છે. અને આકાશના અસંખ્યાત પ્રદેशोभा ना मा २९ छे. 'तत्थ ण जे से घणचवर से' तथा तमा २ धन यतरसंस्थान डाय छे 'से दुविहे पन्नत्ते' में प्रा२नु उस छ 'ओयपएसिए जुम्मपएसिए य' थे।४ प्रशि४ अनेयुभ प्रशि४, 'तत्थ णं जे से ओयपएसिए' तभार या प्रदेशवाणु यतु२ख सथान छ, ‘से जहण्णेणं सत्तावीसह पएसिए'. aruन्ययी २७ अशा डाय छे भने 'सत्तावीसपएसोगाढे' २७ सत्यावीस આકાશ પ્રદેશમાં તેને અવગાહ હોય છે તેના નવ પ્રદેશવાળા પ્રતરની ઉપર