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________________ प्रमेयमन्द्रिका टीका श०२५ उ. २ सू०४ स्थितास्थितद्रव्यग्रहणनिरूपणम् ५८६ भावतोऽपि गृह्णाति, अत्र यावत्पदेन द्रव्यतः क्षेत्रतः कालतच ? ग्रहणं भवति, 'जाई' दव्बाई दो गेट वाई कि एमएसियाई गेव्हइ दुपए सियाई गेण्डयानि द्रव्याणि कार्मणशरीरी द्रव्यतो गृह्णाति तानि किम् एकमदेशिकानि गृह्णाति, द्विपदेशिकानि का गृह्णाति ? त्रिपदेशिकादारभ्य किमनन्तप्रदेशिकानि गृह्णाति इति मनः । उत्तरमाह - ' एवं जह।' इत्यादि, 'एवं जहा भातापदे' एवं यावत् भाषापदे गया ज्ञापनासूत्रस्य एकादशे भाषापदे कथितं तथैवेहापि वक्तव्यम्, तच 'ति परसिवाह गिव्हड, जात्र अनंतपर विवाह गिours' इत्यादि त्रिमदेशिकानि को ग्रहण करता है, क्षेत्र से भी वह पुद्गलद्रव्यों को ग्रहण करता है, काल से भी वह पुगलद्रव्यों को ग्रहण करता है' इस कथन का संग्रह किया गया है । अव गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं - ' जाइ दबाई दग्धओ गेह, ताई कि एमएसियाई गेव्हह, दुपएसियाई गेव्ह' जिन द्रव्यों को फार्मण शरीरी द्रव्य की अपेक्षा ग्रहण करता है तो क्या वह एक प्रदेशवाले जन द्रन्धों को ग्रहण करता है ? अथवा दो प्रदेशो वाले उन द्रव्यों को वह ग्रहण करता है ? अथवा तीन प्रदेशों से लेकर अनन्त प्रदेशोवाले उन द्रव्यों को वह ग्रहण करता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- ' एवं जहा भासापदे जाव आणुपुषि गेव्हह नो अणाणुपुर्विंग does' हे गौतम! इस सम्बन्ध में जैसा कथन प्रज्ञापना सूत्र के ११ वें भाषापद में किया गया है उसी प्रकार से यहां पर भी कहना चाहिये । जो इस प्रकार से है - 'तिपएलियाई गिण्हह ' वह तीन प्रदेशों वाले पुद्गलस्कन्धों को ग्रहण करता है 'जाव अनंतपएसियाई गिव्ह' यावत् પુદ્ગલ દ્રબ્યાને ગ્રહણ કરે છે, ક્ષેત્રથી પણ તે પુદ્ગલ દ્રવ્યોને ગ્રહણ કરે છે, કાળથી પણ તે પુદ્ગલ દ્રવ્યેાને ગ્રહણ કરે છે. આ કથનના સગ્રહ થયેલ છે. हवे गीतभस्वामी प्रभुने मे पूछे छे है- 'जाई दव्वाई' दव्वभो गेव्हइ ताई' किं एग एसियाइ' गेण्हइ दुप्पएखियाइ गेण्डर' ? द्रव्याने अभशु शरी રવાળા દ્રવ્યની અપેક્ષાથી ગ્રહણ કરે છે, તે શું તે એક પ્રદેશવાળા તે દ્રવ્યેાને ગ્રહણ કરે છે? અથવા એ પ્રદેશવાળા તે દ્રવ્યાને ગ્રહણુ કરે છે ? અથવા ત્રણ પ્રદેશથી લઈને અન ત પ્રદેશવાળા તે દ્રવ્યોને તે ગ્રહણુ કરે છે ? આ प्रश्नना उत्तरभां अलु छे - एवं जहा भासापदे जाव आणुपुवि गेण्ड्इ नो अणाणुपुव्वि गेहइ' हे गौतम! आ समधमां ने उथन अज्ञायना સૂત્રના ૧૧ અગીયારમાં ભાષાપદમાં કહેલ છે, એજ પ્રમાણેનુ કથન અહિય या समन्वु लेईयो, ने भी प्रभा छे. - 'तिप्पएसियाइ' गेव्हइ' ते त्रषु भ० ७४ 1
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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