________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.२ सू०१ द्रव्यप्रकाराणां परिमाणादिकम् ५५९ 'दुविहा पन्नत्ता' द्विविधानि अजीवद्रव्याणि प्रक्षतानि 'तं जहा तद्यथा 'रूविअजीवदया य अरूविअजीवदव्या य' रूप्यजीवद्रव्याणि च अरूप्यजीवद्रव्याणि च । 'एवं एएणं अभिलावेणं जहा अनीवपज्जवा' एवम् अनेन प्रकारेण एतेन सूत्रपाठे नेत्यर्थः यथा अजीवपर्यवा-यथा-येन प्रकारेण प्रज्ञपनासूत्रस्य विशेषाभिधाने पञ्च मे पदे अजीवपर्यवाः कथितास्तेनैव रूपेण अत्राजीवद्रव्यमुत्राणि अपि अध्येतव्यानि, कियत्पर्यन्तं प्रज्ञापनप्रकरणं वक्तव्यं तत्राह-'जाव' इत्यादि, 'जाव' यावत्यावत्पदेन 'से तेणटेणं' इति सूत्रपर्यन्तम् तान्येव सूत्राण्याह- ... कहे गये हैं-उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'दुविहा पनत्ता' भजीव द्रव्य दो प्रकार के कहे गये हैं-'तं जहा' जैसे-'रूवि अजियः दवाय अरूवि अजीवदव्वोय रूपी अजीवद्रव्य और अरूपी अजीवद्रव्य __ 'एवं एएणं अभिलावेणं जहा अजीवपज्जवा इस प्रकार इस सूत्रपाठ. द्वारा जैसा प्रज्ञापना सूत्र के विशेष नामके पांचवें पद में अजीव पर्यायाँ के सम्बन्ध में कथन किया है उसी प्रकार से यहां पर भी अजीवद्रव्य के सम्बन्ध में यावत् 'हे गौतम ! इस कारण से मैंने ऐसा कहा है कि वे भजीवद्रव्य संख्यात नहीं हैं असंख्यात नहीं है पर अनन्त हैं। यहां तक कहना चाहिये यही बात 'जाव से तेणटेणं गोयमा । एवं घुच्चह ते णं नो संखेज्जा नो असंखेज्जा अणंता' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की गई है। वे सूत्र ये है
'अरूवि अजीवदया णं भंते ! काविहा पण्णत्ता' हे भदन्त ! अरूपी अजीवद्रव्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर-'गोयमा ! दसविता उत्तरमा प्रभु ४९ छ -'गोयमा' के गीतम ! 'दुविहा पन्नत्ता' म द्रव्य
प्रानु ४ामा माव्यु छ. 'तं जहा' भ-रूवि अजीवदव्वा य अरू विअजीवदव्वा य' ३थी म द्रव्य मन म३पी मप द्रव्य ‘एवं एएणं
अभिलावेण जहा अजीवपज्जवा' मारीत मा सूत्रपाथी प्रज्ञापना, सूत्रना વિશેષ નામના પાંચમા પદમાં અજીવ પર્યાયોના સંબંધમાં કહેવામાં આવ્યું છે, એજ પ્રમાણે અહિયાં પણ અજીવ દ્રવ્યના સંબંધમાં યાવત હે ગૌતમી તે કારણથી મેં એવું કહ્યું છે કે-તે અજીવદ્રવ્ય સંખ્યાત નથી, અસંખ્યાત, ५. नथी पर मनात छ. माह सुधा उनमे से वात 'जाव से वेणट्रेण गोयमा ! एवं वुच्चइ ते णं नो संखेज्जा नो असखज्जा अणंता' मा सत्र पायी छे. ते सूत्र 20 प्रभो छ-'अरूवि अजीवदवाण भंते ! कई विहा पन्नत्ता- गवन् म३५० म०प द्रव्य ८सा २ झुछ भार