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________________ भगवती इस्स वयजोगस्स' त्रिविधस्य मनोयोगस्य चतुर्विधस्य वचोयोगस्य' 'एएसि र्ण सत्तण्डं वि तुल्ले जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे एतेषां सप्तानामपि परस्पर मुल्यो जघन्यो योगोऽसंख्येयगुणोऽधिको भवति । त्रिप्रकारकमनोयोगस्य असत्यमृषारूपस्य व्यवहारमनोयोगस्य पूर्वमेकादशे योगे प्रतिपादितत्त्वात्, तथा सस्यासत्यमिश्रव्यवहाररूपस्य चतुःप्रकारकवचोयोगस्य च, एतेषां सप्तानामपि जयः त्यो योगः पूर्वयोगापेक्षया असंख्येयगुगोऽधिको भवति तथा परस्परं समान भवतीत्यर्थः । 'आहारगसरीरस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे२०' आहारकशरीर स्पोत्कृष्टो योगोऽसंख्येयगुणोऽधिको भवति पूर्वपूर्वयोगापेक्षयेति २०। 'ओरालियसरीरस्स वेउब्धियसरीरस्स चउन्विहस्स य मणजोगस्स चउन्विहस्स य वइजोगस' इस्स मणोजोगस्स चउम्विहस्स क्यजोगस्स' तीन प्रकार के मनोयोग और चार प्रकार के वचनयोग-एएसिं णं सत्तण्हं वि तुल्ले जहण्णएंजोए असंखेज्जगुणे' इन सातों का जघन्य योग परस्पर तुल्य है और पूर्वापेक्षा से असंख्यात गुणा अधिक है। अतः इस अपेक्षा यह योग परस्पर में तुल्य है। यहां पर जो मनोयोग को तीन प्रकार का प्रकट किया गया है सो उसको कारण यह है कि असत्यमृषा (पबहार) मनोयोग पहले ग्यारहवें योगमें बता दिया गया है। सत्यवचन योग, असत्यवचनयोग मिश्रवचनयोग और व्यवहाररूप धधनयोग के भेद से वचनयोग चार प्रकार का कहा गया है। इन सातोका जघन्य योग पूर्व योगकी अपेक्षा असंख्घातगुणरूप से परम्पर तुल्य कहा गया है। 'आहारगसरीररप्त उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे २०' आहारक शरीर का उत्कृष्ट योग पूर्वोक्त जघन्य योग की अपेक्षा असंख्यातगुणा है। 'ओरालियसरीरस्त वेवियसरीरस्स चउब्धिहस्स य मणजीसार प्रारी यनया1-'एएसि णं सत्तण्ड वि तुल्ले जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे' આ સાતે જઘન્ય ચોગ પરસ્પપર તુલ્ય છે અને પૂર્વ પૂર્વની અપેક્ષાથી અસંખ્યાતગણે અધિક છે. જેથી આ અપેક્ષાથી યોગ પરસ્પરમાં તુલ્ય-સરખા છે: અહિયાં મનેગને ત્રણ પ્રકારને બતાવ્યું છે, તે તેનું કારણ એવું છે કે, આહારક શરીરમાં વ્યવહારવાળા મનોગનો અભાવ રહે છે. સત્ય વચનોગ, અસત્ય વચનગ, ઉભય વચનગ, અને વ્યવહાર રૂપ વચનગના કથા વચનગ ચાર પ્રકારને કહ્યો છે. આ સાતેનો જઘન્ય ગ અસંખ્યાતગણે पाथी तुक्ष्य ही छे 'ओहारगसरीरस्स उकोसए जोए असंखेज्जगुणे २० આહારક શરીરને ઉત્કૃષ્ટગ પહેલાં કહેલા જઘન્યાગ કરતાં અસંખ્યાત भी छे. 'ओरलियसरीरस्स वेउब्वियसरीरस्म घउन्विहस्स य मणजोगरम
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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