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________________ भगवती आगामितनभवलेश्यापरिणामे सति जीवः परमत्रं गच्छतीति आगमः । अनेन रूपेणास्य जीवस्य पञ्चश्या आद्या भवन्तीति । 'सेसं तं चेव' शेषम् - लेग्याद्वारातिरिक्तं सर्वं तदेव - सौधर्मदेवकल्प कथितमेवेति भावः ९ । ४९४ अथ मनुष्यान् सनत्कुमारे उत्पादयन्नाह - 'जइ मणुम्सेर्दितो' इत्यादि । 'जइ मणुस्सेर्दितो उववज्जंति' हे भदन्त । यदि मनुष्येभ्य आगत्य सनत्कुमारगतौ उत्पद्यन्ते 'मणुस्साणं जहेव मकरपभाए उववज्जमांणाणं' मनुष्याणां यथैव शर्करा - मभापृथिव्यां समुत्पद्यमानानां नव गमाः कथिताः 'तहेव णत्र त्रि गमा भाणि - यन्त्रा' तथैव नवापि गमा भणितन्त्राः, 'नवरं सर्णकुमारद्विइ संवेदं च जाणेज्जा' उसके अनन्तर वह सनत्कुमार देवगति में उत्पन्न होता है। क्योंकि आगामी भव की लेइया के परिणाम होने पर जीव परभव में जाता है, ऐसा आगम का कथन है । इस रूप से इस जीव के आदि की पांच aarty होनी कही गई हैं । 'सेसं तं चेव' लेश्याद्वार के अतिरिक्त ओर सब द्वारो का कथन सौधर्मदेव के प्रकरण में कहे गये अनुसार ही है ||९ ॥ अव गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'जह मणुस्से हितो उवबज्जंति' हे भदन्त ! यदि जीव मनुष्यगति से आकरके सनत्कुमार गति में उत्पन्न होते हैं, तो इस विषय में नो गम किसके अनुसार कहे गये हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'नणुस्साणं जहेव सक्करप्पभाए उववज्जमाणाणं०' हे गौतम ! इस सम्बन्ध में शर्कराप्रभा में उत्पद्यमान मनुष्यों के नौ गमकों के जैसे नौ गमक यहां कहने योग्य है । परन्तु પ્રાપ્ત કરીને મરે છે. તે પછી તે સનકુમર દેવગતિમાં ઉત્પન્ન થાય છે. કેમકે-આગામી ભવની વૈશ્યાનુ પરિણમન થાય ત્યારે જીવ પરભવમાં જાય છે. એવુ', શ્યાગમનુ કથન છે. એ રૂપથી આ જીવને આદિની પાંચ લૈશ્યાએ डेवानुं छे. 'सेस' तं चेव' सेश्या द्वार शिवाय मोल सघणा द्वारा समधी કથન સૌધમ દેવના પ્રકરણમાં કહ્યા પ્રમાણે જ છે. ા हवे गौतमस्वाभी प्रभुने मेनुं पूछे छे है- 'जइ मणुस्से हिंसो उजव ઉન્નત્તિ' હે ભગવન્ જો જીવ મનુષ્ય ગતિમાંથી આવીને સનકુમાર ગતિમાં ઉત્પન્ન થાય છે, તે આ વિષયમાં નવ ગમે કેના ગમા પ્રમાણે કહ્યા છે ? या प्रश्नना उत्तरमां प्रभु डे - 'मनुस्म्राण जहेब सक्कर पभाव उववज्जमाणानंο' हे गौतम! या संधमां शशलामा उत्पन्न थनारा भनुष्योना नव गभेो प्रभाथॆना नव गमा अडियां देवा लेगो, परंतु 'नगर संकु
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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